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Wednesday, June 2, 2021

प्रारब्ध


 

रात

तुम और ये कायनात

सच

एक अजीब सा

रिश्ता है

कोई

कुछ नहीं कहता।

सबकुछ

कह जाने की

व्याकुलता

गूंजती है

फिर भी

हमारे बीच।

बहुत ऐसा है

जो

बांध रहा है

हमें

कहीं किसी नजर

का कोई प्रश्नकाल।

कोई है

जो जाग रहा है

हम तीनों में

होले से

झांकता हुआ

मन

की अधखुली खिड़की

से आती

मीठी वायु में

उसके एक

पल्ले पर सिर

टिकाए।

हां

हम सभी चिंतित हैं

रिश्तों से रिसते

भरोसे पर

सूखते हरेपन पर

मौन की

चीख पर

दांत कटकटाते

अकेलेपन पर।

हां

हम

खुश हैं

सबकुछ समाप्त होने के बीच

तिनके जैसे शेष

उस सूखे पेड़ पर झूलते

भरोसे पर।

हां

हम उदास हैं

निराश नहीं हैं

क्योंकि

हम, तुम और ये कायनात

ही सच है

एक प्रारब्ध है।

 

फोटोग्राफ-विशाल गिन्नारे


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