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Thursday, July 15, 2021

प्रकृति हजार बार मरती है

 


हमें 

तय करना होगा

हमें 

धरा पर 

हरियाली चाहिए

या

बेतुके नियमों की

कंटीली बागड़।

हरेपन की विचारधारा

को

केवल 

जमीन चाहिए।

नियमों

में 

लिपटी

कागजों में

सड़ांध मारती

बेतुकी 

योजनाओं का 

दिखावा

एक दिन 

प्रकृति को 

अपाहिज बना जाएगा।

हमें 

जिद करनी चाहिए

हरियाली की

हमें 

तय करनी होगी

जन के मन की 

आचार संहिता।

हमें 

खोलने होंगी

स्वार्थ की जिद्दी गांठें

जिनमें

प्रकृति 

हजार बार

मरती है।

हमें

खोलने होंगे

अपने

घर

और 

दिल

जहां

धूप, बारिश और हवा

बेझिझक 

दाखिल हो सके।

सोचिएगा 

हरियाली

चाहिए 

या

सनकी सा सूखापन।

केवल खामोश रहने से

भविष्य

मौन नहीं हो जाएगा

वह चीखेगा..

हमारी पीढ़ियां

बहरी हो जाएंगी...।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...