हमें
तय करना होगा
हमें
धरा पर
हरियाली चाहिए
या
बेतुके नियमों की
कंटीली बागड़।
हरेपन की विचारधारा
को
केवल
जमीन चाहिए।
नियमों
में
लिपटी
कागजों में
सड़ांध मारती
बेतुकी
योजनाओं का
दिखावा
एक दिन
प्रकृति को
अपाहिज बना जाएगा।
हमें
जिद करनी चाहिए
हरियाली की
हमें
तय करनी होगी
जन के मन की
आचार संहिता।
हमें
खोलने होंगी
स्वार्थ की जिद्दी गांठें
जिनमें
प्रकृति
हजार बार
मरती है।
हमें
खोलने होंगे
अपने
घर
और
दिल
जहां
धूप, बारिश और हवा
बेझिझक
दाखिल हो सके।
सोचिएगा
हरियाली
चाहिए
या
सनकी सा सूखापन।
केवल खामोश रहने से
भविष्य
मौन नहीं हो जाएगा
वह चीखेगा..
हमारी पीढ़ियां
बहरी हो जाएंगी...।