रिसता रहा
कच्चा घर
टपकती रही
छत
वह बचाती रही
सोते हुए बच्चों को
ढांकती रही
घर का जरूरी सामान
भीग चुकी चादर मोड़कर
लगाती रही पोंछा
चूल्हे के ऊपर बांध दी तिरपाल
बचाती रही
घर की दीवार पर टंकी
यादों को
बच्चों की किताबों को
घर में रखे मुट्ठी भर राशन को
घर की ओर झुकती दीवार पर
देती रही भारी सामान का टेका
कवेलूओं को लाठी से खिसकाकर
रोकती रही
घर का खतरा
जद्दोजहद के बाद
घर के दरवाजे
खोल
थकी सी बाहर निकली
झुककर किया
बारिश को प्रणाम
कहा
खूब बरसो
ताकि फल फूल सके धरती,जीव और इंसान...