कुछ
पत्ते
धूप लगे
सहेजे हैं
तुम्हारे लिए...।
कुछ
पत्तों पर
धूप सहेजी है
तुम्हारे लिए।
कुछ छांव भी है
पत्तों के
कोरों पर
नमक में
लिपटी हुई
तुम्हारे लिए।
ये मौसम ही
दे पाया हूँ
जिंदगी में
तुम्हें
अब तक...।
धूप सरीखे दिन
की
अधिकता
में ये पत्ते हमारा
हौंसला हैं
और
कोरो की छांव
हमारी उम्मीद...।
बहुत सही कहा आपने। यही उम्मीद है हम सबकी।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका माथुर जी..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,एक पत्ते के साथ जीवन संदर्भ ही जोड़ दिया आपने,और वो पत्ता हर पहलू पर खरा उतर गया,नायाब सोच का उत्कृष्ट उदाहरण ।संदीप जी आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।
ReplyDeleteआभारी हूँ आपका जिज्ञासा जी..।
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