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रविवार, 23 मई 2021

किताब में खोजता है एक अदद नींद




किताब के कुछ

पृष्ठ

जो मोड़ दिए

जाते हैं

अगली रात

पढ़ने के लिए।

उसमें भी कुछ शब्द

दबकर

कसमसा उठते हैं।

दबे शब्द

खामोश हैं

वे जानते हैं

पृष्ठ को मोड़ना

इंसान की मजबूरी नहीं

आदत हो गई है।

इस पर भी मैं

मानता हूँ

बदहवास मानव झूठ के

शिखर पर पूरा दिन

इतराता है।

थकी देह से

अपनी वैचारिक भूख

केवल अपने आप को

बेहतर साबित करने

लौट आता है

बिस्तर के रास्ते

किताब के लिहाफ तक।

वो

अब किताब में

ज्ञान से पहले खोजता है

एक अदद नींद।

कई जगहों से

मुड़ी किताबें

ज्ञान

रखती हैं

अभिमान नहीं।

वो थके व्यक्ति को

शब्दों की थाप देकर

सुला देती है

इस उम्मीद से

कि कोई भोर होगी

जब व्यक्ति

अपने अंदर से जागेगा

बदहवास दौड़ को

पीछे छोड़...।

किताबें

शब्दों में हमारी

समझ की

तस्वीर भी हैं..।


----------------------


(आर्ट... आदरणीय बैजनाथ सराफ जी, खंडवा, मप्र का है, वे ख्यात आर्टिस्ट हैं, उन्हें कलाक्षेत्र के अनेक ख्यात सम्मानों से नवाजा गया है। )

34 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर, जिंदगी के कशमकश को दर्शाती अच्छी रचना, जय श्री राधे...बदहवास मानव झूठ के

    शिखर पर पूरा दिन

    इतराता है।

    थकी देह से

    अपनी वैचारिक भूख

    केवल अपने आप को

    बेहतर साबित करने

    लौट आता है

    बिस्तर के रास्ते

    किताब के लिहाफ तक।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत आभार आपका शुक्ला जी। बहुत कुछ बल गया है आदमी के भीतर...अब आदमी आदमी से सवाल नहीं करता।

      हटाएं
  2. शब्दों में हमारी

    समझ की

    तस्वीर भी हैं..।

    कभी कभी इंसान इतना थक जाता है कि सोने के लिए ही किताबों का साथ ढूँढता है ....
    यूँ मुझे किताबों के पन्ने मोड़ना या उन पर लकीरें खींचना कभी नहीं अच्छा लगा ...किताबें मुझे बहुत प्रिय हैं .

    किताबें पढ़ नए विचार मन में आते हैं .कुछ वैचारिक भूख बढ़ जाती है .... कई बार तो एक ही किताब को पढने से नए नए विचार सूझते जाते ...
    किताब के माध्यम से इंसान कि फितरत बता दी ... बेहतरीन ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी बहुत आभार आपका संगीता जी। मन गर्वित है आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर।

      हटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी लिखी  रचना  सोमवार  24 मई  2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

    जवाब देंहटाएं
  5. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-05-2021 ) को 'दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है' (चर्चा अंक 4075) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
  6. सटीक, ये भी एक पहलु हैं जिंदगी की विसंगतियों का आत्मवंचना लिपटा।
    गहन भाव सृजन।
    सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  7. किताबों को नींद की गोली की तरह इस्तेमाल करना क्या कुछ वैसा नहीं कि ईश्वर को अपनी इच्छाओं की पूर्ति का साधन मानना, ज्ञान का उद्देश्य है अज्ञान की नींद से जगाना, ईश्वर की तरफ जाने का उद्देश्य है भीतर वैराग्य जगाना, और जब चीजों का इस्तेमाल ही सही न हो तो परिणाम की आशा व्यर्थ है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सटीक प्रतिक्रिया आपकी अनीता जी। आभार आपका।

      हटाएं
  8. वो थके व्यक्ति को
    शब्दों की थाप देकर
    सुला देती है
    इस उम्मीद से
    कि कोई भोर होगी
    जब व्यक्ति
    अपने अंदर से जागेगा
    .. सच जब तक अंदर से नहीं जागेगा, तब तक यह उथल पुथल चलती रहेगी

    बहुत सही किताबों के व्यथा चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  9. जी सर,
    आपकी रचनाएँ एक आम मन की अनुभूतियों को साझा करती प्रतीत होती है।
    पढ़ना मानो अपने ही मनोभाव व्यक्त कर रहे हो।
    अति सुंदर,प्रशंसनीय अभिव्यक्ति

    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्‍छी कव‍िता ---वाह, क‍ि "वो थके व्यक्ति को

    शब्दों की थाप देकर

    सुला देती है

    इस उम्मीद से

    कि कोई भोर होगी

    जब व्यक्ति

    अपने अंदर से जागेगा"----और पेंट‍िंग तो गजब ही है। हमारी ओर सं बैजनाथ सराफ जी को प्रणाम भी

    जवाब देंहटाएं
  11. जी बहुत आभार आपका अलकनंदा जी...। मैं आपकी बात आदरणीय बैजनाथ जी तक पहुंचा दूंगा...। आभार आपका।
    अगले

    जवाब देंहटाएं
  12. किताबें हर हाल में इंसान की सच्ची मित्र रही हैं। ज्ञान खोजने पर ज्ञान देती हैं और नींद खोजने पर नींद भी। बहरहाल अगर कोई रोचक उपन्यास या किताब हाथ आ जाता तो रात भर जागकर भी उसे पूरा करके ही चैन मिलता। अब मोबाइल लैपटॉप की स्क्रीन तो आती नींद को भी कोसों दूर भगा देती है।

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    उत्तर
    1. आप एकदम सही कर रही हैं, किताबों का अपना मैजिक है, जो उनमें जीते हैं उन्हें समय का पता नहीं चलता...। आभार आपका मीना जी।

      हटाएं
  13. "...
    थकी देह से
    अपनी वैचारिक भूख
    केवल अपने आप को
    बेहतर साबित करने
    लौट आता है
    बिस्तर के रास्ते
    किताब के लिहाफ तक।
    ...."
    ........अगर मुझे अभी कोई मिल जाए तो इन पंक्तियों पर मैं खूब चर्चा करने बैठ जाऊं। इन पंक्तियों ने कई बातों को समेट कर रखी हैं।

    "...
    कई जगहों से
    मुड़ी किताबें
    ज्ञान
    रखती हैं
    अभिमान नहीं।
    ..."
    ........बिलकुल सही बात। इनका मुड़ना अर्थात् शुद्ध विचारों की प्राप्ति एवं अभिमानी भावों की विलुप्ति।

    "...
    किताबें
    शब्दों में हमारी
    समझ की
    तस्वीर भी हैं..।
    ..."
    .........एक ही किताब को कई बार पढने से यह हर बार नई-नई समझ देता है।

    किताबों को समझने का आपने एक बेहतरीन कोण प्रस्तुत किया। बहुत अभिनन्दन आपका।

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  14. जी प्रकाश जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही गहन होती है...आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  15. आदरणीय सर, किताब के माध्यम से आम आदमी के जीवन की दुविधा, अशान्ति और थकान को बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया है । सच, हम सभी किताबें पढ़ते हैं या कोई प्रेरणादायक उपदेश सुनते हैं पर भीतर से नहीं जागते, भीतर से प्रेरित नहीं होते । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी किताबें युगों तक जीना सिखा सकती हैं, युगों को अपने में समाहित रख सकती हैं, युगों की गहराई हमें प्रदान कर सकती हैं लेकिन हम जेहनी तौर पर ये तो समझें कि किताब के हाथ आते ही हम पूरी तरह से उसी के हो जाएं, उसी को सोचें और उसी में खो जाएं...लेकिन आज का दौर हर आदमी एक थैला हो गया है जिसमें केवल गम, उलझनें, नफरत, दिखावा और जीवन का शाईनिंग वाला चेहरा रखकर घूमता है...आभारी हूं आपका जो आपको मेरी रचना पसंद आई।

      हटाएं
  16. आदरणीय सर, किताब के माध्यम से आम आदमी के जीवन की दुविधा, अशान्ति और थकान को बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया है । सच, हम सभी किताबें पढ़ते हैं या कोई प्रेरणादायक उपदेश सुनते हैं पर भीतर से नहीं जागते, भीतर से प्रेरित नहीं होते । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।

    जवाब देंहटाएं
  17. संदीप जी , किताबों से बहुत गहरा नाता है हम माँ शारदे के उपासकों का | वो हमें सांत्वना भी देती हैं और मार्गदर्शन भी करती हैं | जीवन की अनगिन उलझनों में उलझे मन को थपकी देकर सुलाना कितना आसन है हमारी सबसे प्यारी मित्र किताबों के लिए | सच में मेरे ही मन के भाव लिख दिए आपने | हार्दिक बधाई |

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    उत्तर
    1. आभार आपका रेणु जी एक और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए...किताबें हमारा जीवन हैं, इसे जीवन का दर्जा देने वाले इसके मर्म को समझते हैं....बहुत अच्छी प्रतिक्रिया आपकी। अपना ध्यान रखियेगा।

      हटाएं
  18. थकी देह से
    अपनी वैचारिक भूख
    केवल अपने आप को
    बेहतर साबित करने
    लौट आता है
    बिस्तर के रास्ते
    किताब के लिहाफ तक।
    वैचारिक प्रखरता ही वैचारिक भूख भी बढ़ाती है...और अच्छी किताबें ही हमें सम्यक विचार प्रदान कर सकती है....हाँ पढ़ने का भी एक नशा होता है कई बार थके होने के बावजूद पढना
    पढाई कम और सकून भरी नींद ज्यादा देता है...।
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुधा जी बहुत आभार आपका। पुस्तकों को महसूस करना और उन्हें जीना बहुत गहरा अनुभव है।

      हटाएं

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