पृष्ठ
जो मोड़ दिए
जाते हैं
अगली रात
पढ़ने के लिए।
उसमें भी कुछ शब्द
दबकर
कसमसा उठते हैं।
दबे शब्द
खामोश हैं
वे जानते हैं
पृष्ठ को मोड़ना
इंसान की मजबूरी नहीं
आदत हो गई है।
इस पर भी मैं
मानता हूँ
बदहवास मानव झूठ के
शिखर पर पूरा दिन
इतराता है।
थकी देह से
अपनी वैचारिक भूख
केवल अपने आप को
बेहतर साबित करने
लौट आता है
बिस्तर के रास्ते
किताब के लिहाफ तक।
वो
अब किताब में
ज्ञान से पहले खोजता है
एक अदद नींद।
कई जगहों से
मुड़ी किताबें
ज्ञान
रखती हैं
अभिमान नहीं।
वो थके व्यक्ति को
शब्दों की थाप देकर
सुला देती है
इस उम्मीद से
कि कोई भोर होगी
जब व्यक्ति
अपने अंदर से जागेगा
बदहवास दौड़ को
पीछे छोड़...।
किताबें
शब्दों में हमारी
समझ की
तस्वीर भी हैं..।
----------------------
(आर्ट... आदरणीय बैजनाथ सराफ जी, खंडवा, मप्र का है, वे ख्यात आर्टिस्ट हैं, उन्हें कलाक्षेत्र के अनेक ख्यात सम्मानों से नवाजा गया है। )
बहुत सुंदर, जिंदगी के कशमकश को दर्शाती अच्छी रचना, जय श्री राधे...बदहवास मानव झूठ के
ReplyDeleteशिखर पर पूरा दिन
इतराता है।
थकी देह से
अपनी वैचारिक भूख
केवल अपने आप को
बेहतर साबित करने
लौट आता है
बिस्तर के रास्ते
किताब के लिहाफ तक।
बहुत आभार आपका शुक्ला जी। बहुत कुछ बल गया है आदमी के भीतर...अब आदमी आदमी से सवाल नहीं करता।
Deleteशब्दों में हमारी
ReplyDeleteसमझ की
तस्वीर भी हैं..।
कभी कभी इंसान इतना थक जाता है कि सोने के लिए ही किताबों का साथ ढूँढता है ....
यूँ मुझे किताबों के पन्ने मोड़ना या उन पर लकीरें खींचना कभी नहीं अच्छा लगा ...किताबें मुझे बहुत प्रिय हैं .
किताबें पढ़ नए विचार मन में आते हैं .कुछ वैचारिक भूख बढ़ जाती है .... कई बार तो एक ही किताब को पढने से नए नए विचार सूझते जाते ...
किताब के माध्यम से इंसान कि फितरत बता दी ... बेहतरीन ...
जी बहुत आभार आपका संगीता जी। मन गर्वित है आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 24 मई 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
जी बहुत आभार आपका संगीता जी।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-05-2021 ) को 'दिया है दुःख का बादल, तो उसने ही दवा दी है' (चर्चा अंक 4075) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी बहुत आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी।
Deleteबहुत अच्छी कविता संदीप जी।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका आदरणीय अरुण जी।
Deleteसटीक, ये भी एक पहलु हैं जिंदगी की विसंगतियों का आत्मवंचना लिपटा।
ReplyDeleteगहन भाव सृजन।
सुंदर।
जी बहुत आभार आपका
Deleteकिताबों को नींद की गोली की तरह इस्तेमाल करना क्या कुछ वैसा नहीं कि ईश्वर को अपनी इच्छाओं की पूर्ति का साधन मानना, ज्ञान का उद्देश्य है अज्ञान की नींद से जगाना, ईश्वर की तरफ जाने का उद्देश्य है भीतर वैराग्य जगाना, और जब चीजों का इस्तेमाल ही सही न हो तो परिणाम की आशा व्यर्थ है
ReplyDeleteसटीक प्रतिक्रिया आपकी अनीता जी। आभार आपका।
Deleteवो थके व्यक्ति को
ReplyDeleteशब्दों की थाप देकर
सुला देती है
इस उम्मीद से
कि कोई भोर होगी
जब व्यक्ति
अपने अंदर से जागेगा
.. सच जब तक अंदर से नहीं जागेगा, तब तक यह उथल पुथल चलती रहेगी
बहुत सही किताबों के व्यथा चित्रण
जी बहुत आभार आपका कविता जी।
Deleteजी सर,
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ एक आम मन की अनुभूतियों को साझा करती प्रतीत होती है।
पढ़ना मानो अपने ही मनोभाव व्यक्त कर रहे हो।
अति सुंदर,प्रशंसनीय अभिव्यक्ति
सादर।
जी बहुत आभार आपका श्वेता जी।
Deleteबहुत अच्छी कविता ---वाह, कि "वो थके व्यक्ति को
ReplyDeleteशब्दों की थाप देकर
सुला देती है
इस उम्मीद से
कि कोई भोर होगी
जब व्यक्ति
अपने अंदर से जागेगा"----और पेंटिंग तो गजब ही है। हमारी ओर सं बैजनाथ सराफ जी को प्रणाम भी
जी बहुत आभार आपका अलकनंदा जी...। मैं आपकी बात आदरणीय बैजनाथ जी तक पहुंचा दूंगा...। आभार आपका।
ReplyDeleteअगले
किताबें हर हाल में इंसान की सच्ची मित्र रही हैं। ज्ञान खोजने पर ज्ञान देती हैं और नींद खोजने पर नींद भी। बहरहाल अगर कोई रोचक उपन्यास या किताब हाथ आ जाता तो रात भर जागकर भी उसे पूरा करके ही चैन मिलता। अब मोबाइल लैपटॉप की स्क्रीन तो आती नींद को भी कोसों दूर भगा देती है।
ReplyDeleteआप एकदम सही कर रही हैं, किताबों का अपना मैजिक है, जो उनमें जीते हैं उन्हें समय का पता नहीं चलता...। आभार आपका मीना जी।
Delete"...
ReplyDeleteथकी देह से
अपनी वैचारिक भूख
केवल अपने आप को
बेहतर साबित करने
लौट आता है
बिस्तर के रास्ते
किताब के लिहाफ तक।
...."
........अगर मुझे अभी कोई मिल जाए तो इन पंक्तियों पर मैं खूब चर्चा करने बैठ जाऊं। इन पंक्तियों ने कई बातों को समेट कर रखी हैं।
"...
कई जगहों से
मुड़ी किताबें
ज्ञान
रखती हैं
अभिमान नहीं।
..."
........बिलकुल सही बात। इनका मुड़ना अर्थात् शुद्ध विचारों की प्राप्ति एवं अभिमानी भावों की विलुप्ति।
"...
किताबें
शब्दों में हमारी
समझ की
तस्वीर भी हैं..।
..."
.........एक ही किताब को कई बार पढने से यह हर बार नई-नई समझ देता है।
किताबों को समझने का आपने एक बेहतरीन कोण प्रस्तुत किया। बहुत अभिनन्दन आपका।
जी प्रकाश जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही गहन होती है...आभार आपका।
ReplyDeleteआदरणीय सर, किताब के माध्यम से आम आदमी के जीवन की दुविधा, अशान्ति और थकान को बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया है । सच, हम सभी किताबें पढ़ते हैं या कोई प्रेरणादायक उपदेश सुनते हैं पर भीतर से नहीं जागते, भीतर से प्रेरित नहीं होते । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
ReplyDeleteजी किताबें युगों तक जीना सिखा सकती हैं, युगों को अपने में समाहित रख सकती हैं, युगों की गहराई हमें प्रदान कर सकती हैं लेकिन हम जेहनी तौर पर ये तो समझें कि किताब के हाथ आते ही हम पूरी तरह से उसी के हो जाएं, उसी को सोचें और उसी में खो जाएं...लेकिन आज का दौर हर आदमी एक थैला हो गया है जिसमें केवल गम, उलझनें, नफरत, दिखावा और जीवन का शाईनिंग वाला चेहरा रखकर घूमता है...आभारी हूं आपका जो आपको मेरी रचना पसंद आई।
Deleteआदरणीय सर, किताब के माध्यम से आम आदमी के जीवन की दुविधा, अशान्ति और थकान को बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया है । सच, हम सभी किताबें पढ़ते हैं या कोई प्रेरणादायक उपदेश सुनते हैं पर भीतर से नहीं जागते, भीतर से प्रेरित नहीं होते । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
ReplyDeleteसंदीप जी , किताबों से बहुत गहरा नाता है हम माँ शारदे के उपासकों का | वो हमें सांत्वना भी देती हैं और मार्गदर्शन भी करती हैं | जीवन की अनगिन उलझनों में उलझे मन को थपकी देकर सुलाना कितना आसन है हमारी सबसे प्यारी मित्र किताबों के लिए | सच में मेरे ही मन के भाव लिख दिए आपने | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआभार आपका रेणु जी एक और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए...किताबें हमारा जीवन हैं, इसे जीवन का दर्जा देने वाले इसके मर्म को समझते हैं....बहुत अच्छी प्रतिक्रिया आपकी। अपना ध्यान रखियेगा।
Deleteथकी देह से
ReplyDeleteअपनी वैचारिक भूख
केवल अपने आप को
बेहतर साबित करने
लौट आता है
बिस्तर के रास्ते
किताब के लिहाफ तक।
वैचारिक प्रखरता ही वैचारिक भूख भी बढ़ाती है...और अच्छी किताबें ही हमें सम्यक विचार प्रदान कर सकती है....हाँ पढ़ने का भी एक नशा होता है कई बार थके होने के बावजूद पढना
पढाई कम और सकून भरी नींद ज्यादा देता है...।
बहुत ही लाजवाब सृजन।
सुधा जी बहुत आभार आपका। पुस्तकों को महसूस करना और उन्हें जीना बहुत गहरा अनुभव है।
Deleteफोटो व कविता दोनों उम्दा
ReplyDeleteआभार आपका उषा किरण जी।
Delete