एक छोटी कविता...
एक सुबह
हम जागे
और
प्रकृति
निखर उठी।
कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
जीने के लिए कोई खास हुनर नहीं चाहिए इस दौर में केवल हर रोज हर पल हजार बार मर सकते हो ? लाख बार धक्का खाकर उस कतार से बाहर और आखिरी तक पहुं...
'जागरण' अपने लिए ही नहीं सबके लिए सदा सुख लाता है
जवाब देंहटाएंआभार आपका अनिता जी।
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंवाह
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