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Sunday, November 27, 2022

हम जिंदा हैं


धरा दरक रही है
दरारों में गहरे सुनाई देते हैं
सुधारों के खोखले शंखनाद।
ग्लेशियर पिघल रहे हैं
टूटकर कराहते हुए
हो रहे हैं पानी-पानी
और 
हम उन्हें पिघलता देख
टूट रहे हैं अंदर तक
इस चिंता में 
कल कैसा होगा
होगा भी 
या नहीं होगा
क्योंकि आज हम केवल चिंता में ही 
पिघल रहे हैं 
काश की 
धरा के साथ दरकते
और
ग्लेशियर के साथ
अंदर से
पिघलकर टूट जाते।
हवा 
में घुल रहा है
प्रदूषण का जहर
और 
हम जिंदा हैं
क्योंकि हमारी दुनिया में
मास्क हैं, सिलेंडर हैं और हमारी सनक वाली जिद।
कैसी जिद है
कैसी सनक
हम नहीं जानते 
कल के पहले आज को हम दांव पर लगा चुके हैं
सूली पर चढ़ चुके हैं
हमारी नदियां, तालाब, बावड़ियां, कुएं 
हमें 
पत्थर का सूखा सा जहां चाहिए
वह अवश्य मिलेगा
खुश हो जाईए हम मिटने की ओर अग्रसर हैं।


 

18 comments:

  1. ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, मानव यदि समय रहते सजग नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ियों को इसके परिणाम झेलने होंगे

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    1. सही कहा आपने...।आभार अनिता जी।

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  2. आपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  3. आभार आपका संगीता जी।

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  4. धरा का दरकना ग्लेशियर पिघलना ये सब चेतावनी है हमे प्रकृति की...अभी भी ना संभले तो परिणाम बुरे ही होंगे।
    बहुत सुंदर ....लाजवाब सृजन।

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  5. आदरणीय सर , बहुत ही सशक्त मन को झकझोरता हुआ सृजन । सच है माँ प्रकृति पर जो हमारे द्वारा नित्य अत्याचार होते हैं , वह हमें हमारे विनाश की ओर धकेल रहे हैं । प्रकृति हमारे सारे आघात श कर भी , हमारा पालन-पोषण करती है और हमें विनाश से बचाए रखने का प्रायत्न करती है पर कभी न कभी तो उसका संयम टूटेगा । सादर प्रणाम आपको व हार्दिक आभार । एक अनुरोध भी , मेरे दो ब्लॉग हैं , कृपया दोनों पर आकर अपना आशीष दीजिए।

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    Replies
    1. आभारी हूं आपका। अवश्य आपके ब्लॉग देखकर अपनी प्रतिक्रिया दूंगा।

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  6. भविष्य की भयावह तस्वीर उकेरती आपकी गहन अभिव्यक्ति को नमन है सर।
    प्रणाम
    सादर।

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  7. पर्यावरण की भयावहता सभी ओर दिखने लगी है पर आज भी हम सचेत नहीं हो रहे हैं ।
    सच कहा आपने कल क्या हम तो आज ही
    नाश के कगार पर हैं।
    यथार्थ परक सार्थक सृजन।

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  8. हम नहीं जानते
    कल के पहले आज को हम दांव पर लगा चुके हैं////👌👌👌

    जी संदीप जी, मिटने की कगार पर खड़ा व्यक्ति इस भयावह् स्थिति को अनदेखा कर अपने क्षणिक आनन्द में आकन्ठ लीन है।काश! इस प्रश्नों के उत्तर दे सके कोई।झझ्कोरती सच्चाई को बहुत ही संवेदनशीलता से लिखा है आपने।

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  9. आभारी हूं आपका।

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  10. सूली पर चढ़ चुके हैं
    हमारी नदियां, तालाब, बावड़ियां, कुएं
    हमें
    पत्थर का सूखा सा जहां चाहिए
    वह अवश्य मिलेगा
    खुश हो जाईए हम मिटने की ओर अग्रसर हैं।
    .. प्रकृति और पर्यावरण पर गहन चिंतन है आपका संदीप जी । बहुत ही विचारणीय विषय ।

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