फ़ॉलोअर

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

नदी का श्वेत पत्र

हर रात 
नदियां कुरेदी जाती हैं
खरोंची जाती हैं
सुबह तक 
वे 
बाज़ार में होती हैं।
दोपहर तक 
ठिकानों पर
और 
शाम तक 
मकानों की दीवारों में चिन दी जाती हैं।
ऐसे रोज नदियां
घिस रहीं हैं
अंदर से।
उनकी देह रज से बने मकानों में
सदियों से एक सवाल 
सुलझ नहीं पाया 
कि 
आखिर नदियां खोखली क्यों हो रही हैं? 
अनुत्तरित सवाल 
अखबारों में पढ़कर 
गाड़ीवान 
अगली सुबह फिर 
नदी की छाती पर सवार हो जाता है
उसे कुरेदने...। 
हम बहुत चिंता करते हैं
कि 
वाकई भविष्य खतरे में है
नदियां नहीं बचेंगी 
तो 
कैसे बचेगा भविष्य। 
खुरची नदी 
अपने आप को सौंप देती है
उन लौह नखों के वाहक को
अंदर ही अंदर रोती है
चीखती है
और 
गहरे तक 
समा जाती है अपने ही अंतस में।

5 टिप्‍पणियां:

  1. नदी की व्यथा साझा करती बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
    सादर।

    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० फरवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदमी की ख्वाहिशों के लिए बलिदान हो रही है प्रकृति और अंतत: आदमी खुद भी

    जवाब देंहटाएं
  3. आह , बहुत ही मार्मिक और सटीक अभिव्यक्ति. कितनी प्रशंसा करूं.. कम होगी

    जवाब देंहटाएं

जल्द नहीं कटती दोपहर

 बोझिल सी सांझ के बाद कोई सुबह आती है जो दोपहर की तपिश साथ लाती है और  उसमें घुल जाया करता है पूरा जीवन। उसके बाद  थके शरीर पर  होले होले शी...