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Thursday, September 14, 2023

नमक होती जा रही है नदी

 तपिश के बाद

नदी की पीठ पर

फफोले हैं

और 

खरोंच के निशान

हर रात

खरोंची जाती है

देह 

की रेत 

रोज हटाकर 

खंगाला जाता है

गहरे तक.

हर रात 

ऩोंची गई नदी

सुबह दोबारा शांत बहने लगती है

अपने जख्मों में दोबारा

रेत भरती है.

नदी की आत्मा 

तक 

गहरे निशान हैं

छूकर देखिएगा

नदी रिश्तों में नमक होती जा रही है.

एक दिन 

खरोंची नदी 

पीठ के बल सो जाएगी 

हमेशा के लिए

तब तक हम 

सीमेंट से जम चुके होंगे

अपने भीतर पैर लटकाए.

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