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शनिवार, 23 सितंबर 2023

नदी से रिश्ता

 


नदी किनारे नरम रेत पर

अब भी चस्पा है

बचपन

और

मेरी अबोध उम्र के निशान।

नदी भी तब

अबोध हो जाया करती थी

बार-बार

मेरे पैरों में पानी के मोटे-मोटे छींटे मार

लहरों में खिलखिलाती थी।

किनारा कच्चा था

लेकिन 

नदी से उसका रिश्ता 

मजबूत था

कभी भी नदी ने 

उस किनारे को पीछे नहीं धकेला

हर बार

उसे छूती हुई 

गुजर जाती।

उस किनारे कहीं 

नदी की रेत में 

एक घरोंदा बनाया था

जो आज तक 

है

मेरे मन, भाव, शब्दों और नदी के भरोसे में।

मेरे पदचिन्ह 

नदी के मुहाने तक चस्पा हैं

उसके बाद नदी है

नदी है

और 

मेरी आचार संहिता।


गुरुवार, 14 सितंबर 2023

नमक होती जा रही है नदी

 तपिश के बाद

नदी की पीठ पर

फफोले हैं

और 

खरोंच के निशान

हर रात

खरोंची जाती है

देह 

की रेत 

रोज हटाकर 

खंगाला जाता है

गहरे तक.

हर रात 

ऩोंची गई नदी

सुबह दोबारा शांत बहने लगती है

अपने जख्मों में दोबारा

रेत भरती है.

नदी की आत्मा 

तक 

गहरे निशान हैं

छूकर देखिएगा

नदी रिश्तों में नमक होती जा रही है.

एक दिन 

खरोंची नदी 

पीठ के बल सो जाएगी 

हमेशा के लिए

तब तक हम 

सीमेंट से जम चुके होंगे

अपने भीतर पैर लटकाए.

गुरुवार, 31 अगस्त 2023

हजार दरकन, योजन सूखा



नदी

से रिश्ता

अब 

सूख गया है

या 

नदी के साथ

बारिश के दिनों वाले

मटमैले पानी के साथ

बहकर 

समुद्र के पानी में मिलकर

खारा हो गया है। 

नदी से रिश्ते में देखे जा सकते हैं

हजार दरकन

और

योजन सूखा। 

एक दिन 

रिश्ते के बेहतर होने की आस ढोती हुई नदी

समा जाएगी 

हमेशा के लिए पाताल में। 

नदी 

और

हमारे रिश्ते में

अब भी

उम्मीद की नमी है

चाहें तो 

बो लें कुछ अपनापन

रिश्ता

और बहुत सी नदी। 

तो जिंदगी आसान है

 जीने के लिए  कोई खास हुनर नहीं चाहिए इस दौर में केवल हर रोज हर पल हजार बार मर सकते हो ? लाख बार धक्का खाकर उस कतार से बाहर और आखिरी तक पहुं...