रंगों का समाज
खुशियों
के
मोहल्ले
की
चौखट पर
उकेरा
गया महावर है।
रंगों
के
समाज में
उम्र की
हरेक सीढ़ी
का
कद
निर्धारित है।
रंगों
का समाज
जीने
की जिद
को
खुशी
की
मीठी सी
आइसक्रीम
में भिगोता है।
रंगों
के समाज
में
खरपतवार
भी
अंकुरित हो उठते हैं
उम्र की
चढ़ती सीढ़ी के
इर्दगिर्द।
रंगों का समाज
उम्र के
महाग्रंथ
को हिज्जे की तरह
नहीं पढ़ता
वो
उसे
कंठस्थ करता है।
रंगों के समाज
में
फीकापन
उम्र
बुढ़ापा नहीं होता।
वो चटख रंगों
का समाज
फीके रंगों
को
भी
गहरे आत्मसात करता है।
बस यही दर्शन
है...।