Followers

Showing posts with label खामोशी भेद समय दर्द चीख भरोसा. Show all posts
Showing posts with label खामोशी भेद समय दर्द चीख भरोसा. Show all posts

Tuesday, April 27, 2021

चीखती है खामोशी भी


हर बार

खामोशी

केवल चुभती है

या

इतना गहरा भेद जाती है

जिसमें

सदियों रिसते हैं

समय,

दर्द

सच

चीख

और दरक चुका भरोसा।

उम्रदराज खामोशी

इतिहास लिखती है

वह

चीखती नही

वह

चुभती है। 

इसके विपरीत

वहशियाना शोर 

तात्कालिक समय के कानों को भेद सकता है

इतिहास में

सच में

भरोसे की जमीन पर

जगह नहीं पा सकता।

खामोशी भी चीखती है

लेकिन

उसकी चीख

को पकने में समय लगता है

वो अंदर ही अंदर 

दहकती है।

बेढंगा शोर 

बहशी होकर

अधपका जख्म हो जाता है

और 

रिसता है अपने ही अंदर

नकारेपन की मवाद बनकर।

शोर के पीछे

भी तंत्र है

और 

खामोशी के पीछे भी तंत्र है

शोर और खामोशी

दोनों के बीच

एक आदमी है

जो

पिस रहा है

महीन हो चुका है

टूट रहा है

दला जा रहा है

अपनी 

भिंची खामोशी के बीच।

देखना

एक दिन खामोशी की चीख

शोर 

को बहरा कर 

बसाएगी

अपना कोई नया समाज।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...