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Monday, April 5, 2021

पहाड़ तुम कभी शहर मत आना


 सुना है

सख्त पहाड़ों

के

गांव

में

तपिश

भी नहीं है

और 

गुस्सा भी नहीं।

वे

अब भी

अपनी पीठ पर

बर्फ के 

बच्चों को

बैठाकर

खिलखिलाते हैं।

सुना है

वहां

सुनहरी सुबह

और 

गहरी नीली

सांझ होती है।

पहाड़

अपने पैर

जमीन में

कहीं बहुत गहरे

लटकाए

बैठे हैं

चिरकाल से।

हवा

भी उसके भारी भरकम

शरीर पर

सुस्ताने आती है।

ओह

पहाड़ तुम

कभी 

शहर मत आना

यहाँ

आरी और कुल्हाड़ी

का 

राज है

जंगल

भी आए थे

शहर घूमने

यहीं बस गए

और अब

शहर

उन पर 

पैर फैलाए

ठहाके लगाता है।

आती है

कभी कभी

जंगल के

सुबकने की आवाज़...।

मत 

आना तुम शहर...।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...