तुम अबकी बारिश
आ जाना
बीती कई बारिश
केवल
तुम्हारे खत आ रहे हैं
उन्हें सीलन से बचाते हुए
मैं
तुम्हें देखना चाहता हूं
उन खतों के आसपास।
उन खतों में आखर
अब पीले होने लगे है।
कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
तुम अबकी बारिश
आ जाना
बीती कई बारिश
केवल
तुम्हारे खत आ रहे हैं
उन्हें सीलन से बचाते हुए
मैं
तुम्हें देखना चाहता हूं
उन खतों के आसपास।
उन खतों में आखर
अब पीले होने लगे है।
सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...