जब कोई मकान
घर होता है
तब वह एक सफर तय करता है।
ठीक वैसे ही
जैसे
कोई खरा कारोबारी
ढलती उम्र में
जीवन का सच समझता है
और
लौटता है, समाज की फटी एड़ियों को
धोता है।
जैसे कोई उम्रदराज़
सुस्ताता है नीम की छांव में एकांकी
ठहर जाना चाहता है
उसे घर कहता है।
जहां अनुभूति होती है
पुरखों की
जैसे कोई सुन रहा है
आपके दर्द
बिना कहे।
हां घर
होकर मकान और जीवन
पूर्णता का अहसास पाते हैं।
मकान भी
घर होने के बाद
मकान नहीं होना चाहता।
मकान
उस घर में ही रहना चाहता है।
घर का सफर
मकान के सफर से बेहद सरल है।
बस
हर ईंट को छूकर कहिए
आपमें हमारा जीवन है
हमारा समय
और
असंख्य सुखद यादें...।