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Tuesday, June 28, 2022

ये तस्वीरें सहेज लेना


मन आहत है
हमारी दुनिया को 
बेपानी होता देख। 
मन आहत है
हम पानी के अरसा पहले 
सूख गए।
मन आहत है
कि धरती पर 
संकट दीवारों पर चस्पा हो रहा है। 
मन आहत है
हम तपती धरती पर 
तल्लीन हैं 
ओघड़ मस्ती में।
मन आहत है
बारी- बारी सूख रहे हैं परिंदे। 
समझना होगा 
सहेज लीजिए इन तस्वीरों को 
कल 
यही अहसास की सीलन
लिए 
सहारा होंगी। 
मैं सूखते समाज में
आहत परिंदों पर 
मातम नहीं चाहता 
पानी चाहता हूँ
उनके लिए
क्योंकि यकीन मानिए
मानव के अंत की शुरुआत
पक्षियों के अंत से होती है।
(फोटोग्राफ दिल्ली में मेट्रो के नीचे वाल पर बने आर्ट का है... आर्ट जिसने भी बनाया मैं उन्हें नमन करता हूँ... उन्होंने खरा सच दिखाया...चाहते तो नल से बूंदें भी गिरती दिखा सकते थे... लेकिन हकीकत यही है कि कल कोई पानी नहीं होगा...)




 

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...