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रविवार, 15 जून 2025

दो दुनिया, तीसरी कोई नहीं

 कोई दुनिया है

जो बहुत शांत है

अकेली है

अपने से बतियाती है

वहां कोई कर्कश शोर नहीं है।

एक दुनिया है 

जहां शोर ही शोर है

जो न बतियाती है

और 

न ही 

जीने देती है। 

यह शोर और कर्कश भरी दुनिया

हमने बुनी है

अपने लिए

अपने समय को इस कर्कशता के सांचे में ढालकर।

यकीन मानिए 

वह पहली दुनिया 

जंगल है

दूसरी हमारी 

और तीसरी कोई दुनिया नहीं है।





मंगलवार, 28 जून 2022

ये तस्वीरें सहेज लेना


मन आहत है
हमारी दुनिया को 
बेपानी होता देख। 
मन आहत है
हम पानी के अरसा पहले 
सूख गए।
मन आहत है
कि धरती पर 
संकट दीवारों पर चस्पा हो रहा है। 
मन आहत है
हम तपती धरती पर 
तल्लीन हैं 
ओघड़ मस्ती में।
मन आहत है
बारी- बारी सूख रहे हैं परिंदे। 
समझना होगा 
सहेज लीजिए इन तस्वीरों को 
कल 
यही अहसास की सीलन
लिए 
सहारा होंगी। 
मैं सूखते समाज में
आहत परिंदों पर 
मातम नहीं चाहता 
पानी चाहता हूँ
उनके लिए
क्योंकि यकीन मानिए
मानव के अंत की शुरुआत
पक्षियों के अंत से होती है।
(फोटोग्राफ दिल्ली में मेट्रो के नीचे वाल पर बने आर्ट का है... आर्ट जिसने भी बनाया मैं उन्हें नमन करता हूँ... उन्होंने खरा सच दिखाया...चाहते तो नल से बूंदें भी गिरती दिखा सकते थे... लेकिन हकीकत यही है कि कल कोई पानी नहीं होगा...)




 

दरारों के बीच देखिएगा कहीं कोई पौधा

  कहीं किसी सूखती धरा के सीने पर कहीं किसी दरार में कोई बीज  जीवन की जददोजहद के बीच कुलबुलाहट में जी रहा होता है। बारिश, हवा, धूप  के बावजूद...