कोरोना काल में कविताएं...
2.
जीवन
बुन रहा है
आंसुओं का नया आसमान।
चेहरे
पर
चीखती लापरवाहियां
भुगोल होकर
इतिहास
हो रही हैं।
घूरती आंखों के बीच
सच
निःशब्द सा
खिसिया रहा है।
सूनी
डामर की तपती सड़कें
बेजान
मानवीयता के
अगले सिरे पर सुलगा रही है
क्रोध।
चीख
तेजी से मौन
ओढ़ रही है।
आंखें घूर रही हैं
बेजुबान
सी
सवाल करना चाहती हैं
कौन
है
जिसने बो दी है
इस दुनिया में
ये जहर वाली जिद।
कौन है
जिसकी सनक ने
मानवीयता को कर दिया है
बेजुबान।
कौन है
जिसे
फर्क नहीं पड़ता
आदमी के बेजान
शरीर में तब्दील हो जाने पर।
शरीर
चल रहे हैं
आंखें सुर्ख हैं
शिकायत
और शोर
अब मौन में तब्दील है
सब
तलाश रहे हैं
एक जीवन
एक सच
और
एक खामोशी।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना रविवार १८ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
नमस्कार श्वेता जी...आभार
हटाएंबड़ा भयावह है ये काल .... सटीक चित्रण कर दिया है आपने .
जवाब देंहटाएंआभार संगीता जी...भयावह काल है, हम अपनों को समझाएं और गलतियां न करने के लिए कहें...।
हटाएंमानव में मानवता का आभाव, विवकहीनता और लापरवाहियों ने इस काल को आमंत्रण दिया है।अब परमात्मा भी कुछ नहीं क्र सकता। गलती की है सजा तो भुगतनी ही। सटीक चित्रण संदीप जी
जवाब देंहटाएंसच कही रही हैं आप कामिनी जी...भयावह काल है, अब बचाव ही सुरक्षा है। आप और अपनों का ख्याल रखियेगा। आभार
हटाएंआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंजी अवश्य अमित जी आभारी हूं आपका।
हटाएंसच में..आंसुओं का नया आसमान ही सजा डालें हम सभी। भयावह स्थिति पर सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंबधाई।
जी बहुत आभार पम्मी जी...।
हटाएंजी रवीन्द्र जी बहुत आभार..।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका...
हटाएंसटीक चित्रण।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका
हटाएंबहुत ही सुंदर मन को छूते भाव।
जवाब देंहटाएंसराहनीय सृजन।
सादर
बहुत आभार आपका
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