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शुक्रवार, 21 मई 2021

दर्द होता है उन्हें भी


झुर्रियों वाले समाज मेंं

शोर नहीं है

एकांकीपन है

जो कभी-कभी चीखता है 

उम्रदराज चीख

बेदम होती है

लेकिन

अक्सर

कालखंड को 

कर जाती है

बेदम। 

धुंधली आंखों से

बेशक 

सब कुछ धुंधला नजर आता है

बावजूद 

वे दूर का संकट देख लेते हैं

बेहद साफ।

बेशक सुनने की क्षमता भी 

कम हो जाती है

बावजूद सुन लेते हैं 

आहट उस संकट की। 

बेशक चलने की गति

धीमी हो जाती है

बावजूद

वे सोच लेते हैं

समाधान संकट का 

तेज गति से।

बेशक अकेले दम घुटता है उनका

बावजूद 

रखते हैं ख्याल 

उन 

बच्चों द्वारा बनाई गई दूरियों का 

उनमें तलाशी जाने वाली

मरीचिका वाली 

खुशी का

बच्चों के चेहरों का

उनकी बेनामी बेबसी का

मन में उठने वाले तूफानों का

और

रह जाते हैं

अकेले

एकांत 

और मौन समेट 

किसी एक कमरे में

तन्हा

बिना किसी शिकायत 

केवल मुस्कुराते हुए। 

बेशक दर्द होता है उन्हें

बावजूद 

वे कहते नहीं हैं

मन की 

अक्सर वे

उस समय खामोश हो जाते हैं

जब उन्हें 

घर की कोई पुरानी 

लकड़ी की कुर्सी 

पर बैठकर

सबकुछ सुनने का होता है

निर्देश।  

बेशक वे सोचते हैं

अपनी परिवरिश में रह गई कमियों पर 

मनन करते हैं

अपनी खामियों पर

बच्चों की जिद पर

अपने जरुरत से अधिक नेह पर

सुखों वाले दिनों पर

और 

केवल आज पर। 

वे 

मनन नहीं करते

अपने आज के हालात पर 

अपने माता-पिता होने के अधिकार पर

अपनी खुशियों पर 

अपनी बातों के अनसुना कर दिए जाने पर

बच्चों की जिद पर

उनके रूखे बर्ताव पर

अपने सम्मान पर। 

अक्सर वे 

बतियाते हैं

समय से

वृक्षों से

खाली मैदानों की बैचों से

हमउम्र और कम सुनने वाले साथियों से

अपने अकेले कमरे से

कभी-कभी अपने घर की दीवारों से

आंगन में फुदकते पक्षियों से 

वृक्षों से

वे बतियाते हैं

थकन से

कुछ पुरानी किताबों से।

अक्सर देर रात

थकी आंखों से

आंसुओं में बहने लगता है दर्द

तब किताब

बंद कर देते हैं

ये कहते हुए

कोई अध्याय अधूरा सा रह गया

इस जनम

कोई 

पेज आधा सा लिखा हुआ।


16 टिप्‍पणियां:

  1. सच दर्द सबको होता है लेकिन उसे व्यक्त करने का ढंग सबका अपना-अपना होता है
    एक उम्र जीने के बाद दुनिया में कैसे जीना है, उसका ढंग अनुभव की किताब समझा ही देती है सबको
    सब जानते हुए ही इंसान समय रहते समझ ही नहीं पाता कि उसे भी उसी राह चलना है, जिस पर उन्हें चलना सिखाया है अपनों ने .....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार आपका कविता जी....। सच कहा आपने, ये उम्र का ऐसा कालखंड है जहां अनुभव वाले लोग रहा करते हैं, वे बेहद शांत और गहरे होते हैं।

      हटाएं
  2. आह ..... और वाह ।

    उम्र बीतती है
    साथ आदमी
    बीतता जाता है
    चश्मे पुरनम में
    अश्कों का सैलाब
    उतर आता है ।
    मनन करते हैं
    और सोचते हैं
    अपनी ही कमियां
    कुछ परवरिश में ,
    फंसता है कंठ में
    कुछ धुआँ सा
    जो अंदर ही
    घुट जाता है ।

    खूबसूरती से बयाँ कर दिया आपने बुजुर्गों के जीवन को ।




    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार आपका संगीता जी....बहुत गहरी पंक्तियां है...ये उम्र का गहन सिरा है।

      हटाएं
  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-05-2021 ) को 'मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये' (चर्चा अंक 4072 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभारी हूं।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सारगर्भित कविता हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्र बीतती है
    साथ आदमी
    बीतता जाता है
    चश्मे पुरनम में
    अश्कों का सैलाब
    उतर आता है ।
    मनन करते हैं
    और सोचते हैं
    अपनी ही कमियां
    कुछ परवरिश में ,
    फंसता है कंठ में
    कुछ धुआँ सा
    जो अंदर ही
    घुट जाता है ।
    वाह!!!
    क्या बात...बहुत ही सटीक ...
    लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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