मुझे थके चेहरों पर
गुस्सा
नहीं
गहन वैचारिक ठहराव
दिखता है।
विचारों का एक
गहरा शून्य
जिसमें
चीखें हैं
दर्द है
सूजी हुई आंखों का समाज है।
थके चेहरों पर
पसीने के साथ बहता है
अक्सर
उसका धैर्य।
घूरता नहीं
केवल अपने भीतर
ठहर जाता है
अक्सर।
सफेद अंगोछे में
कई छेद हैं
उसमें से
बारी बारी से झांक रही है
बेबसी
और
उन चेहरों पर ठहर चुका
गुस्सा।
जलता हुआ शरीर
तपता है
मन तपता है
विचार से खाली मन
और अधिक तपता है
सूख गया है आदमी
आदमी के अंदर
उसकी नस्ल की उम्मीद भी।
यह
दौर आदमी के दरकने पर
आदमी के मुस्कराने का भी है।
यह दौर
दरकते आदमी
का भूगोल कहा जाएगा।
मैं बचता हूं
ऐसे चेहरों को देखने से
क्योंकि वह
देखते ही चीखने लगते हैं
और
कहना चाहते हैं
अपने ठहरे गुस्से के पीछे का सच।
चीखते चेहरों के समाज का मौन
अक्सर
बेहद खौफनाक होता है।
एक मार्मिक विश्लेषण संदीप जी | व्यवस्था से उबा इंसान मौन के अलावा कर भी क्या सकता | थके आदमी की चिंतन शक्ति बहुत प्रखर होती है | सच है--
ReplyDeleteचीखते चेहरों के समाज का मौन/अक्सर/बेहद खौफनाक होता है।///
बहुत सही पढ़ा आपने इस मौन को | हार्दिक शुभकामनाएं|
बहुत बहुत आभारी हूं आपका इस गहन प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteचीखते चेहरों के समाज का मौन
ReplyDeleteअक्सर
बेहद खौफनाक होता है।
बेहद भयावह स्थिति को दर्शा रही है आपकी ये रचना ।
बहुत बहुत आभारी हूं आपका इस गहन प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteथके चेहरों पर खिंची
ReplyDeleteलकीर पढ़ने की कोशिश में
अक्सर फूट पड़ा
अंतर्मन का रूदन
और
चीख़ते चेहरे
कह जाते हैं
भय की परिभाषा
इसलिए
अब नज़रें नीची किये
हाथ धरकर कानों में
मैं करती हूँ
आत्मविश्लेषण का ढ़ोग।
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आदरणीय सर
आपका चिंतन अत्यंत
भावपूर्ण एवं सराहनीय है।
प्रणाम
सादर।
बहुत आभारी हूँ आपका श्वेता जी...।
ReplyDeleteसुंदर संदर्भ उठाया है अपने अपनी इस रचना के माध्यम से,सच ही तो है,मौन जब मुखर होता है,तो दर्द के साथ आक्रोश भी फूट पड़ता है,सार्थक सृजन।
ReplyDeleteजिज्ञासा जी बहुत बहुत आभार आपका। मन की सुनो तो बहुत चीखें सुनाई देती हैं...।
Deleteदेखते ही चीखने लगते हैं
ReplyDeleteऔर
कहना चाहते हैं
अपने ठहरे गुस्से के पीछे का सच।
चीखते चेहरों के समाज का मौन
अक्सर
बेहद खौफनाक होता है।
सत्य पर आधारित बहुत ही उम्दा रचना!
मनीषा जी बहुत बहुत आभार आपका। ।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteज्योति जी बहुत बहुत आभार आपका। ।
Deleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteअनीता जी बहुत बहुत आभार आपका। ।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअनुराधा जी बहुत बहुत आभार आपका। ।
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सुशील जी। ।
Deleteप्रकृति के अंतर्मन की आवाज़ जैसे प्रतिध्वनित हो रही हो, जीवंत रचना मुग्ध करती है - - साधुवाद सह।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शांतनु जी। ।
Deleteआभारी हूं आदरणीय रवींद्र जी। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए।
ReplyDeleteबहुत बहुत ही सुंदर सर मन को छूते भाव।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी।
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