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गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

स्याह तस्वीर


भूख का रंग नहीं होता
आकार भी नहीं
चेहरा होता है
जली हुई रोटी सा
झुलसा और गुस्सैल चेहरा।
फटे जीवन में 
जली रोटी की महक
बच्चे की ललचाई और गहरे धंसी आंखों में
जीवन की उम्मीद है।
भूख का एक सिरा
घर की चारपाई से बंधा होता है
और 
दूसरा सिरा 
बेकारी की फटी छत की तिरपाल से। 
भूख की पीठ पर 
बेबसी के निशान
उम्र के साथ गहरे होते जाते हैं।
कंदील में रोशनी में 
झुलसी रोटी और बच्चे 
एक जैसे लगते हैं। 
रोटी की स्याह तस्वीर
चेहरे पर हर पल नजर आती है।
भूख का कद 
पेट से होकर
उम्र के अंतिम सिरे तक जाता है।
भूख एक उम्मीद पालती है
और
अगले ही पल
बांझ हो जाती है।
भूख पर शोर 
एक आदत है, चीख है, सच है।
भूख पर नीति
केवल 
चेहरे बनाती है। 
चेहरे पर भूख केवल एक सच है
जिसमें तलाशी जाती है भूख
और मिटाई जाती है
भूख।
भूख पर दस्तावेज
अक्सर कोरे नज़र आते हैं
क्योंकि भूख शब्दों में 
लिखी नहीं जा सकी अब तक।
भूख 
रोती हुई मां के चेहरे पर 
चिंता की गहरी झाई है
जिसे 
पहले समय
फिर समाज
और आखिर में 
बच्चे भी कर देते हैं
अनदेखा।
भूख केवल 
पल पल मौत की ओर बढ़ता 
हलफनामा है।।





 

रविवार, 19 दिसंबर 2021

उम्र और सांझ


सुर्ख सच 
जब उम्रदराज़ होकर
कोई किताब हो जाए
तब मानिये
उम्र का पंछी 
सांझ की सुर्ख लालिमा 
के परम को 
आत्मसात कर चुका है।
उम्र और सांझ
परस्पर
साथ चलते हैं
उम्र
का कोई एक सिरा
सांझ से बंधा होता है
और 
सांझ
का एक सिरा
उम्रदराज़ विचारों से बंधा होता है।
एक 
किताब
उम्र
और 
सांझ
आध्यात्म का चरम हैं।
सांझ लिखी जा सकती है
ठीक वैसे ही
उम्र विचारों में ढलकर
किताब हो जाती है।
आईये
सांझ के किनारे
एक उम्र की
किताब
सौंप आएं
सच और सच 
को गहरे जीती हुई 
नदी की लहरों को।
आखिर 
उम्र और सांझ 
दोनों ही प्रवाहित हो जाती हैं
एक किताब के श्वेत पन्नों पर...।

 

शनिवार, 4 दिसंबर 2021

पीला समय


उम्र के कुछ पन्ने 

बहुत सख्त होकर 

सूखे से 

दोपहर के दिनों 

की गवाही हैं..।

सूखे पन्नों पर 

अनुभव का सच है

जो उभरा है अब भी

उन्हीं सूखे पन्नों

के खुरदुरे शरीर पर।

पन्ने का सूख जाना

समय का पीलापन है

शब्दों का नहीं।

समय 

सिखा रहा है

अपनी खुरदुरी पीठ 

दिखाते हुए

खरोंच के निशान

जो 

दिखाई नहीं देते

दर्द देते हैं।

उम्र का हरापन

भी जिंदा है

शब्दों 

की मात्राओं के शीर्ष पर 

अभी पीला नहीं हुआ है।

हरे से पीले हो जाने में 

कुछ नहीं बदलता

बस 

एक उम्र सख्त होना सिखा जाती है।

पीले पन्नों की किताब में 

अभी कुछ श्वेत हैं

अनुभव का 

खिलखिलाता हरापन 

लिखना चाहता हूँ

उन पर।

देख रहा हूँ 

पीले पन्नों में 

अनुभव के कुछ शब्द

घूर रहे हैं

वे 

अब भी सहज नहीं हैं।



(फोटोग्राफ /गजेन्द्र पाल सिंह जी...। आभार)

 

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...