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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

लौट आओ


गांव के घर

और 

महानगर के मकानों के बीच

खो गया है आदमी।

गांव को

लील गई

महानगर की चकाचौंध

और

महानगर भीड़ के वजन से

बैठ गए 

उकडूं।

हांफ रहे हैं महानगर

और 

एकांकी से सदमे में हैं गांव। 

गांवों के गोबर लिपे 

ओटलों पर 

बुजुर्ग 

चिंतित हैं

जवान बेटों के समय से पहले 

बुढ़या जाने पर। 

तनकर चलने वाला पिता

झुकी कमर वाले पुत्र को देख

अचंभित है

क्या महानगर कोई

उम्र बढ़ाने की मशीन है? 

थके बेटे को खाट पर बैठाए

पिता देते हैं

कांपते हाथों पानी

और 

खरखरी वाली आवाज़ में सीख

गांव लौट आओ

तुम बहुत थक गए हो।

9 टिप्‍पणियां:

  1. क्या गाँव लौट पायेगा बेटा
    शहर चुम्बक है

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय सर,
    अत्यंत भावपूर्ण और मर्मान्तक रचना। सच ही महानगरों को चकाचौंध ने गांव के सुख शांति से भरे जीवन को लील दिया है। गांव से शहर की ओर भाग रहे युवा और गांवों का निरन्तर शहरीकरण करने वाले सत्ताधारी यह नहीं अमजद पा रहे कि किस तरह बहकावे में आ कर वे अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का खिलवाड़ कर रहे हैं। बहुत ही सुंदर रचना के लिए आभार व आपको सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं

  3. शहरी हवा उड़ा ले गयी गांव को शहर में
    चिंतनशील रचना
    ,,

    जवाब देंहटाएं

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