कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
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Friday, August 25, 2023
हां नदी अंदर से नहीं पढ़ी गई
Thursday, August 24, 2023
हां, उम्रदराज़ पिता ऐसे ही तो होते हैं
Tuesday, August 22, 2023
बारिश की उम्मीद
अबकी बारिश
तुम अबकी बारिश
आ जाना
बीती कई बारिश
केवल
तुम्हारे खत आ रहे हैं
उन्हें सीलन से बचाते हुए
मैं
तुम्हें देखना चाहता हूं
उन खतों के आसपास।
उन खतों में आखर
अब पीले होने लगे है।
Friday, July 28, 2023
नदियों की सीमाएं नहीं होती
नदियां इन दिनों
झेल रही हैं
ताने
और
उलाहने।
शहरों में नदियों का प्रवेश
नागवार है
मानव को
क्योंकि वह
नहीं चाहता अपने जीवन में
अपने जीवन की
परिधि में कोई भी खलल।
सोचता हूं
कौन अधिक दुखी है
कौन किसके दायरे में हुआ है दाखिल।
नदियों की सीमाएं नहीं होती
नदियां अपनी राह प्रवाहित होती हैं
सदियां तक।
सीमाओं में हमें बंधना चाहिए
इसके विपरीत
हम बांध रहे हैं नदियों को
अपनी मनमाफिक
और
सनक की सीमाओं में।
नदियों पर हमारा क्रोध
कहां तक ठीक है
जबकि
हम जानते हैं
उसके हिस्सों पर बंगले बनाकर
हम
अक्सर नदियों के सूख जाने पर
कितनी नौटंकी करते हैं।
बंद कीजिए
नदियों को उलाहना
और
ध्यान दीजिए दायरों पर
और
ध्यान दीजिए
मानव और नदियों के बीच रिश्तों में
आ रही दरारों पर।
नदियां कभी क्रूर नहीं होतीं
यदि वह
अपनी राह बहती रहें....।
Thursday, June 8, 2023
कोई नदी तो होगी
Tuesday, May 23, 2023
यह वह सिरे वाली नदी नहीं
नदी का पहला सिरा
यकीनन कभी
उगते सूर्य के सबसे निचले
पहाड़ के गर्भ में कहीं
बर्फ के नुकीले छोर से बंधा रहा होगा।
नदी का दूसरा सिरा
नहीं होता।
नदी
उत्पत्ति से विघटन
की परिभाषा है।
सतह पर जो है
नदी नहीं
क्योंकि
पहले सिरे का वह बर्फ वाला
नुकीला छोर
टूटकर नदी के साथ बह गया।
अब उस नदी का
पहला सिरा भी नहीं है
केवल
हांफती हुई जिद का कुछ
सतही आवेग है
जो
उस पहले सिरे सा
किसी दिन बह जाएगा
और
रह जाएगी
केवल नदी की दास्तां
पथ
निशान
और उसकी राह में
शहरों की आदमखोर भीड़।
नदी
उस पुत्री की तरह है
जो जानती है
मायके के हमेशा के लिए छूट जाने का दर्द
और
दूसरे सिरे की अंतहीन यात्रा का अनजान पथ
और
उस पर प्रतिपल पसरता भय।
नदी है
लेकिन यह वह सिरे वाली नदी नहीं।
ये हमारी जिद...?
सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...

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नदियां इन दिनों झेल रही हैं ताने और उलाहने। शहरों में नदियों का प्रवेश नागवार है मानव को क्योंकि वह नहीं चाहता अपने जीवन में अपने जीवन ...
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सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...
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यूं रेत पर बैठा था अकेला कुछ विचार थे, कुछ कंकर उस रेत पर। सजाता चला गया रेत पर कंकर देखा तो बेटी तैयार हो गई उसकी छवि पूरी होते ही ...