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शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

हां नदी अंदर से नहीं पढ़ी गई

 


नदी

अंदर से जानी नहीं गई

केवल

सतही तौर पर देखी गई।

उसकी भीतरी हलचल

का कोई साझीदार नहीं है

केवल

जलचरों के।

नदी बहुत भीतर

कुछ निर्मल है

और

बहुत सी बेबस भी।

वह

उसकी आत्मा का नीर

उन जलचरों के लिए है

जो नदी के दर्द पर

उसकी कराह में शामिल होते हैं।

सतही पानी नदी की विवशता है

सतही बातों के बीच

नदी बहुत बेबस है।

वह सिमट रही है

प्रवाहित होते हुए भी

अपने भीतर

जलचरों को समेटते हुए

उसका आत्म नीर

घटता जा रहा है

और घटते जा रहे हैं

जलचर।

हां नदी अंदर से नहीं पढ़ी गई

केवल

सतही विकारों और किनारों को लिखा गया

उसके हर दिन के रुदन को

जलचरों को घटते निर्मल नीर को

बदबूदार सतह को ढोने की विवशता को

कहा पढ़ा जा सका।

नदी गहरे कहीं-कहीं

सहती है

कालिख सा बदबूदार पानी

जिससे जल का निर्मल भाव

नदी की आत्मा

और

जलचर मर जाते हैं।

क्या पढ़ पाए हैं हम

नदी को

उसके दर्द को

उसकी इच्छा को

उसके सिमटते भविष्य पर

क्या महसूस कर पाए हैं

उसके मौन को ?

नदी कहां पढ़ी गई

वह तो

केवल

उलीची गई

खूंदी गई

विचारों की बदबूदार साजिशों में।

कभी पढ़ो

तो पाओगे

किनारों पर गहरे

नदी के रुदन का नमक मिलेगा

जो हर रोज बढ़ रहा है

और

बढ़ रही है

हमारी और नदी के बीच

रिश्तों में खाई। 



गुरुवार, 24 अगस्त 2023

हां, उम्रदराज़ पिता ऐसे ही तो होते हैं


उम्रदराज़ पिता ऐसे ही होते हैं
कांपते हाथों 
फेर ही देते हैं
हारते बेटे के सिर पर हाथ।
धुंधली छवियों के बीच
देख ही लेते हैं
बच्चों के माथों पर चिंता की लकीरें
हां, उम्रदराज़ पिता ऐसे ही होते हैं।
भागती हुई जिंदगी से कदमताल करते हुए
केवल रात को ही थकते हैं
और
सुबह सबसे पहले उठ जाते हैं
उम्रदराज़ पिता।
घर में खुशियों को बोते हैं
विचारों की उधडन की करते हैं तुरपाई
विवादों को टालते हैं
और
अधिकांश गलतियां ओढ़ लेते हैं खुद ही
हां, ऐसे ही होते हैं उम्रदराज़ पिता।
सबसे आखिर में पढ़ते हैं अखबार
और
पसंदीदा खबर सुनाने 
पूरा दिन करते हैं इंतजार 
पत्नी के सुस्ताने वाली घड़ी का।
पहले हमेशा गुमसुम रहने वाले पिता
अब  
जरुरी मौकों पर मुस्कारते हैं। 
किसी भी आहट से पहले
जाग जाते हैं
पूरा दिन घर को मंथते हैं
अपनों को जीते हैं
जिंदगी के नये पुराने दिनों को यादों में सीते हैं
हां ऐसे ही तो होते हैं उम्रदराज़ पिता।
अक्सर खाली जेब बाजार चले जाते हैं 
उम्मीदें लेकर 
लौट आते हैं पिता
बिना पूछे ही बाजार की कुछ मनमाफिक 
गढ़ी हुई कहानियां सुनाते हैं पिता।
किसी पुराने दोस्त के मिलने
और 
मिलकर बतियाने को बताते हैं नज़ीर
ताकि घर समझें और जीना सीख जाएं
जीवन की एक शानदार तरकीब।
हां ऐसे ही तो होते हैं उम्रदराज़ पिता।
खाली समय में
कभी-कभी
अपनी कुर्सी, चश्मे और पुरानी पुस्तकों से 
भी बतियाते हैं पिता।
एक उम्र को जीकर पिता होना 
और 
उम्रदराज होकर भी 
घर को कांधे पर टांगे रखना
हां उम्रदराज़ पिता ऐसे ही तो होते हैं।




 

मंगलवार, 22 अगस्त 2023

बारिश की उम्मीद

तुम
मैं 
और बारिश।
सच 
कितना सुखद संयोग था।
बारिश सी तुम 
मेरे जीवन पर 
ओस की बूंद सी उभरीं
मैं 
तुम्हें गर्म मौसम से बचाता रहा
ताकि 
बंधी रहे उम्मीद
बारिश की
ओस की
रिश्तों की। 
तुम अब भी मेरे आंगन में
मौसम की उमंग हो
ओस की वह बूंद
अब तक
सहेज रखी है मैंने
तुम्हारे भीतर
अपने भीतर 
और
इस तरह सहेज पाया बारिश
बारिश की उम्मीद
इस मौसम में बो दिया है
भरोसा
बारिश यूं ही साथ रहेगी
जैसे हम और तुम।


 

अबकी बारिश

तुम अबकी बारिश

आ जाना

बीती कई बारिश

केवल 

तुम्हारे खत आ रहे हैं

उन्हें सीलन से बचाते हुए

मैं 

तुम्हें देखना चाहता हूं

उन खतों के आसपास।

उन खतों में आखर 

अब पीले होने लगे है।

शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

नदियों की सीमाएं नहीं होती

 नदियां इन दिनों 

झेल रही हैं

ताने

और

उलाहने।

शहरों में नदियों का प्रवेश

नागवार है 

मानव को

क्योंकि वह 

नहीं चाहता अपने जीवन में 

अपने जीवन की 

परिधि में कोई भी खलल।

सोचता हूं

कौन अधिक दुखी है

कौन किसके दायरे में हुआ है दाखिल।

नदियों की सीमाएं नहीं होती

नदियां अपनी राह प्रवाहित होती हैं

सदियां तक।

सीमाओं में हमें बंधना चाहिए

इसके विपरीत

हम बांध रहे हैं नदियों को

अपनी मनमाफिक 

और

सनक की सीमाओं में।

नदियों पर हमारा क्रोध

कहां तक ठीक है

जबकि

हम जानते हैं 

उसके हिस्सों पर बंगले बनाकर 

हम 

अक्सर नदियों के सूख जाने पर

कितनी नौटंकी करते हैं।

बंद कीजिए

नदियों को उलाहना

और

ध्यान दीजिए दायरों पर

और 

ध्यान दीजिए 

मानव और नदियों के बीच रिश्तों में

आ रही दरारों पर।

नदियां कभी क्रूर नहीं होतीं

यदि वह

अपनी राह बहती रहें....।



गुरुवार, 8 जून 2023

कोई नदी तो होगी


कोई नदी तो होगी
जो 
ठहर जाएगी
सूखने के पहले
उन्हें बर्फीली कंद्राओं में।
कोई नदी तो होगी
जो 
हमारे जहां तक 
आने के पहले ठहर जाएगी
अपने अपनों के बीच।
कोई नदी तो होगी
जो
रास्ते रास्ते
ठहर ठहरकर 
पूछेगी सवाल
जल को स्याह करने वालों से।
कोई नदी तो होगी
जो 
रसातल में समाने से पहले
आदमी का अतीत उकेर जाएगी।
कोई नदी तो होगी
जो
वर्तमान और भविष्य के बीच 
वैचारिक फफोलों को उजागर कर जाएगी।
कोई नदी तो होगी 
जो 
बहने से पहले राह देखेगी
नीयत देखेगी
बातों का सूखापन देखेगी
और 
देखेगी आदमी में कैद आदमी
के अनंत दुराभाव।
कोई नदी तो होगी
जो सुन रही होगी
शेष नदियों की चीख
रुदन
और 
प्रलाप।
कोई नदी तो होगी
जो 
कलयुग के अंत तक
टिकी रहे 
और
प्रयास करती रहे 
पृथ्वी को बचाने का,
बेशक वह भीष्म जैसी हो पर क्रोध न दिखाए।
कोई नदी तो अवश्य होगी
जो 
मानव के वर्तमान कर्मों की सजा
उसकी 
मासूम पौध को नहीं देगी।
यकीनन कोई नदी तो अवश्य होगी
जो पिघलती बर्फ को 
समेट ले अपनी देह में
और छिपा ले
कहीं किसी कंद्रा की दरारों में
पर्वतों की भुजाओं में।
कोई नदी तो होगी
जो उम्मीद संभाले बैठी रहे
उस हिमालय पर
जहां सबकुछ पानी पानी होने लगा हैं 


 

मंगलवार, 23 मई 2023

यह वह सिरे वाली नदी नहीं

नदी का पहला सिरा

यकीनन कभी 

उगते सूर्य के सबसे निचले

पहाड़  के गर्भ में कहीं

बर्फ के नुकीले छोर से बंधा रहा होगा।

नदी का दूसरा सिरा

नहीं होता।

नदी 

उत्पत्ति से विघटन

की परिभाषा है।

सतह पर जो है

नदी नहीं

क्योंकि 

पहले सिरे का वह बर्फ वाला

नुकीला छोर 

टूटकर नदी के साथ बह गया।

अब उस नदी का 

पहला सिरा भी नहीं है

केवल 

हांफती हुई जिद का कुछ 

सतही आवेग है

जो

उस पहले सिरे सा

किसी दिन बह जाएगा

और 

रह जाएगी

केवल नदी की दास्तां

पथ

निशान

और उसकी राह में

शहरों की आदमखोर भीड़।

नदी 

उस पुत्री की तरह है

जो जानती है

मायके के हमेशा के लिए छूट जाने का दर्द

और

दूसरे सिरे की अंतहीन यात्रा का अनजान पथ

और 

उस पर प्रतिपल पसरता भय।

नदी है 

लेकिन यह वह सिरे वाली नदी नहीं। 

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...