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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

स्याह वक्त बोध का शिखर है



दो 

मौसम

दो 

उम्र 

और 

सारे सच।

अबोध सुर्ख

और 

स्याह बुढ़ापा

दोनों

गहरे होते हैं।

उम्र का सुर्ख 

मौसम

अबोध से बोध 

की ओर 

सफर है।

उम्र का स्याह

वक्त

बोध का शिखर है।

दो 

रंग उम्र नहीं हो सकते

उम्र 

रंग से उकेरी जा 

सकती है।

कोई 

सर्द सुबह 

कुछ भीग रहा होता है

अंतस 

में गहरे

वो सूखकर

स्याह हो जाता है

बुजुर्ग 

हो जाता है।

स्याह मौसम में 

सुर्खी को समझना

अबोध वक्त

को 

दोबारा टांकने जैसा है।

थकी उम्र की

धुंधली पायदान

पर 

केवल 

सच दिखता है

सुर्खी और स्याह 

मौसम के बीच।



गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

एकांत में बुनती है घर की खिड़की


 

घर की खिड़की

पर 

सीले 

दरवाजे 

की

एक फांस

में 

लटका है

बचपन।

बंद 

घर को 

झीरियां

जीवित रखती हैं

वहां से आती 

हवा 

से 

सीलती नहीं हैं

घर की यादें

बचपन

और 

बहुत कुछ

जो

जिंदगी

अकेले में

एकांत में बुनती है।

एकांत में

बुने गए

दिनों पर

अब 

समय के जाले हैं।

खिड़की

की वो 

फांस

उम्रदराज़

दरवेश है

जो

संभाले है

मौन 

के बीच सच

और 

बचपन

और 

यादें...।

खिड़की का दूसरा 

हिस्सा

अकेलेपन के बोझिल

मौसम की पीड़ाएँ

झेल रहा है

वो 

जानता है

फांस 

और 

उसके कर्म में

आए 

बदलाव

और

झूलते बचपन

के बीच

बीतते

उम्र के कालखंड की

बेबसी को...।

ये 

घर 

और खिडक़ी

एक दिन

किताब 

में गहरे समा जाएंगे...।

बुधवार, 31 मार्च 2021

चटख रंगों का समाज


 रंगों का समाज 

खुशियों 

के 

मोहल्ले 

की 

चौखट पर

उकेरा 

गया महावर है।

रंगों 

के 

समाज में

उम्र की 

हरेक सीढ़ी 

का

कद 

निर्धारित है।

रंगों 

का समाज

जीने 

की जिद 

को 

खुशी 

की 

मीठी सी

आइसक्रीम 

में भिगोता है।

रंगों 

के समाज 

में 

खरपतवार 

भी 

अंकुरित हो उठते हैं

उम्र की

चढ़ती सीढ़ी के

इर्दगिर्द।

रंगों का समाज

उम्र के 

महाग्रंथ 

को हिज्जे की तरह 

नहीं पढ़ता

वो 

उसे 

कंठस्थ करता है।

रंगों के समाज 

में 

फीकापन

उम्र 

बुढ़ापा नहीं होता।

वो चटख रंगों 

का समाज

फीके रंगों 

को 

भी 

गहरे आत्मसात करता है।

बस यही दर्शन 

है...। 

उम्रदराज़ भाषा में गहरे तक उभरता है प्रेम


कुछ 

अहसास

जो 

पथरा से गए हैं

उम्र 

की कोख में।

उम्र 

की 

बुजुर्ग 

होती 

जिद के बीच

कुछ

शब्द बचा रखे हैं

कविता के लिए

प्रेम के लिए।

कहा जाता है

प्रेम

उम्रदराज़ भाषा में

गहरे तक 

उभरता है।

इस उम्र में

भाव 

की उकेरी गई

लकीरें

बहुत 

सीधी होती हैं

आसानी से पढ़ी 

जा सकने वाली।

सच

प्रेम

इसी उम्र 

में 

अनुभव होकर

जिंदगी 

बन जाता है...।

मंगलवार, 30 मार्च 2021

ये घर बतियाता है तुम जानती हो


कोई

घर महकता है

तुम्हें पाकर।

कोई 

चौखट घंटों बतियाती है

तुमसे।

कोई दालान

तुम्हारे साथ जीना चाहता है।

कोई

दरवाजा तुम्हें महसूस कर

खिलखिला उठता है

अकेले में।

कोई धूप

कहीं किसी दरवाजे की ओट से

देखने आ जाती है

तुम्हें।

ये घर 

तुम्हारी  मौजूदगी का हस्ताक्षर है

तुम

जैसे चाहो इसे 

शब्दों में कह सकती हो।

तुम चाहो तो

इसे 

मन कह दो

चाहो तो

आत्मा

या फिर

हमारे अहसास।

घर 

तुमसे है

और 

तुम्हीं घर की श्वास हो।

घर 

तुम्हें न पाकर 

उतावला सा

आ बैठता है

मुख्य दरवाजे की चौखट पर

दूर तक देखता है

एक सदी निहारता है

और 

तुम्हें पाकर 

समा जाता है

अहसासों की चारदीवारी में।

घर

बतियाता है

हां 

ये घर बतियाता है

तुम जानती हो

शनिवार, 27 मार्च 2021

अक्सर चीखने वालों को देख मुस्कुराईये

 


कुछ रंग सजाईये

कुछ रंग बनाईये

उसमें बचपन की मस्ती

और 

पचपन की समझ

को घोटिये।

कुछ खुशियां मिलाईये

कुछ परेशानियों के किरचें आ जाएं तो

उन्हें निकाल फेंकिये

कुछ मिठास घोलिये

अपने दोस्तों संग बिताए

खूबसूरत पलों की

कुछ जमाईये 

ठंडी सी आईसक्रीम गर्म रिश्तों में।

कुछ फिरकी भी लीजिए

बच्चों की

बच्चों से पूछिये अटपटे से सवाल।

कुछ बुजुर्गो को गले लगाईये

अक्सर चीखने वालों को देख

मुस्कुराईये 

दिखाईये ताकत 

मुस्कुराहट की।

सादे हैं तो कुछ रंगीन हो जाईये

रंगीन हैं तो

सादे होकर पपीते से बन जाईये।

कुछ वृक्षों की छांह तक हो आईये

बच्चों को कागज दीजिए

और 

मिलकर पानी के चित्र बनाईये।

मजाक में ही सही

जिंदगी का एक गहरा सबक

इस होली सब तक पहुंचाईये।

ये होली

यूं अकेले और उदास सी है

ये बोझिल सी

उदासी को हटाईये 

घर में मोबाइल रखिये

और

किचन में चले जाईये

जीवन साथी के काम में 

कुछ हाथ बटाईये।

टीवी रोज देखकर थक गए हैं

अब

घर के सोफे पर 

पुरानी तरह की कोई 

एक 

महफिल जमाईये। 

ठहाकों में चलने दीजिए

चाय के कई दौर

कुछ पुराने हो जाईये

कुछ नया गुनगुनाईये।

जीवन में आनंद को खोजिए

उसके हो जाईये

आनंद बरसाईये। 

नशे में डूबे लोगों को समझाईये

जिंदगी कुछ यूं जी जाती है

नशे में तो उम्र ही नहीं

पूरी जिंदगी ही सूख जाती है।

अबकी कीजिए शुरुआत कुछ नया करेंगे

अबकी

होली पर जिंदगी 

और परिवार में 

कुछ नया रंग भरेंगे।

होली की शुभकामनाएं...मस्त रहें, खुश रहें और दूसरों के बेहतर होने में मददगार साबित हों क्योंकि ईश्वर ने सृष्टि मिलकर बनाई है और मिलकर ही वो परमपिता उसे संचालित करता है, हम असंख्य हैं और खुशियां और दुखों में उलझे हैं....मस्त रहें और खुश रहें, मिलकर चलें जिंदगी को खिलखिलाते हुए जीएं...। 

(फोटोग्राफ गूगल से साभार) 

गुरुवार, 25 मार्च 2021

इस जंगल में अब कोई पेड़ नहीं है


जिंदगी

और कैसी है

कुछ

ऐसे ही जीते हैं

कुछ ऐसे

हो जाते हैं।

जीवन का 

यदि कोई

चित्र खींचा जाए

तब

वह

कुछ इसी तरह का होगा।

कुछ जो

दमक रहा है

वह

हमारी

चेतना है

लेकिन

उलझनों के बीच

वह

सतत

छोटी हो रही है।

चेतना के बीच

ये जंगल हमीं ने बुना है

हम

ऐसे ही

खुश हैं

हम

इन उलझनों वाले

धागों पर रोज सफर

तय करते हैं

कूदते हैं

टूटते हैं

और 

इन्हीं में बसे हमारे घर में

थककर सो जाते हैं।

सोचता हूँ

बुना हुआ जीवन

और चुने हुए रास्तों में

हम

कितने साथ हैं

कितने अकेले।

इस जंगल में

अब कोई पेड़ नहीं है

केवल हैं

ऐसे ही

उलझे से

जीवन के चित्र।

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...