कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
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शनिवार, 24 सितंबर 2022
चेहरों के आईने में

मंगलवार, 20 सितंबर 2022
मैं तुम्हें देना चाहता था

सोमवार, 19 सितंबर 2022
सफर में

रविवार, 18 सितंबर 2022
ताकि तुम्हें दे सकूं समय और आज
हर बार तुम्हारे टूटने से
मेरे अंदर भी
गहरी होती है कोई पुरानी ददार।
तुम्हारे दर्द का हर कतरा
उन दरारों को छूकर
गुजरता है
और
चीख उठता हूं मैं भी
अतीत को झकझोकर
पूछता हूं सवाल
मैं कौन हूं
और
क्या हूं
और कितना हूं...?
मैं जानता हूं तुम्हारे दर्द पर
सहलाने के बहाने
कुरेदा जाता है समय
मैं जानता हूं
तुम्हें चेहरे से हर बार
मैं तिल तिल घटता पा रहा हूं
मैं
अपनी हथेलियों पर रेखाओं के बीच
कोई रास्ता तलाशता हूं
ताकि तुम्हें दे सकूं
समय
जवाब
और हमारा बहुत सा आज।
मैं जानता हूं
तुम हर बार टूट रही हो
झर रही हो
क्योंकि तुम मुझ सी हो
और मेरे अंदर बहुत गहरे
बहती हो सदानीरा सी
अपने किनारों पर होने वाली
हलचल को अनदेखा करती हुई।
मैं
तुम्हें सदनीरा ही चाहता हूं
मैं चाहता हूं
तुम और मैं यूं ही साथ प्रवाहित रहें
विचारों में
जीवन में
इस
महासमर के हरेक सख्त सवाल पर।
मैं जानता हूं
तुम सूख सकती थीं
तुम सुखा सकती थीं
तुम रसातल में भी समा सकती थीं
लेकिन
तुमने मेरे लिए
खामोशी को आत्मसात कर
सदानीरा होना स्वीकार किया।
मन में कहीं
हर बार बहुत सा सूखता है
बिखरता है
लेकिन
हर बार तुम सदानीरा बन
उसे अंकुरित कर जाती ह
समय के सांचे में ढाल...।

मंगलवार, 30 अगस्त 2022
तुम्हें अधिकार है
तुम्हें अधिकार है
मेरे प्रेम तत्व के हरण का।
तुम्हें
अधिकार है
उस रंग को बदरंग करने का
जो निखरा है तुम्हारे लिए
और तुमसे।
तुम्हें
अधिकार है
उन कोमल हिस्सों पर
नुकीले दंश चुभाने का
जिन्हें तुम चाहते तो
सहला सकते थे
सदियों।
तुम्हें
अधिकार है
मेरे अंतस में छिपे पराग को
छिन्न भिन्न करने का
तुम चाहते तो
उनसे बसा सकते थे
असंख्य प्रकृति।
तुम्हें
अधिकार है
नेहालाप का
तुम्हें
अधिकार है
उन सभी क्रूर बहानों को छिपाने का
जो तुम रचते रहे
मेरे
दैहिक हनन के समय।
तुम्हें
अधिकार है
मुझे शोषण के बाद
बिखरने को छोड़ने को।
मुझे बिखरकर भी
बेमतलब खाद होना
पसंद है
तुम्हें तो दूसरा फूल खोजना होगा
उसे दोबारा वायदों में
बहकाने को..।

गुरुवार, 4 अगस्त 2022
युग अपने पैरों लौट जाएगा
कोई उम्मीद
पत्तों पर नूर सी
महकती है।
पत्तों पर उम्र गुजार
समा जाती है
सशरीर
बिना शर्त
क्योंकि
रिश्तों में अनुबंध नहीं होता।
हरापन
देकर
पत्तों से जीवन का दर्शन
सीखकर
बूंद
का आभा मंडल दमकता है।
बूंद एक युग है
जो सूख रहा है
मानवीय शिराओं में।
हरापन
बूंद को सहेज
एक उम्मीद गढ़ती है हर रोज।
सांझ
उम्मीद की पीठ फफोले से पट जाती है
पूरा दिन
उस बूंद में आखेट करता है
और समा जाता है
उसी के गर्भ में..।।
अबकी युग अपने पैरों
लौट जाएगा
सूखे और बिलखते आपदाग्रस्त
विचारों से
हारकर...।
कोई युग कैसे ठहरेगा
इस
बेसुरे विचारों के बीच।

शनिवार, 30 जुलाई 2022
हमारे प्रेम अनुबंध के दस्तावेज

अभिव्यक्ति
प्रेम वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है। शरीर क...
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यूं रेत पर बैठा था अकेला कुछ विचार थे, कुछ कंकर उस रेत पर। सजाता चला गया रेत पर कंकर देखा तो बेटी तैयार हो गई उसकी छवि पूरी होते ही ...
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नदियां इन दिनों झेल रही हैं ताने और उलाहने। शहरों में नदियों का प्रवेश नागवार है मानव को क्योंकि वह नहीं चाहता अपने जीवन में अपने जीवन ...
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सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...