फ़ॉलोअर

रविवार, 1 अगस्त 2021

अहा ये जिंदगी

जिंदगी
हमेशा केवल तुममे 
नज़र आती है...।
जानता हूँ
जिंदगी
तुम्हारे 
सपनों पर हमेशा रखती है
तुम्हारे मुस्कुराने की शर्त।
बेटी
तुम्हें
लिखना 
और पढ़ना
मेरे लिए
कठिन है
क्योंकि शब्दों
के चयन में 
उलझ जाता हूँ
हां 
तुम्हें महसूस करता हूँ
हर पल
तुम्हारे
चेहरे को देखकर।
अच्छा पिता
हूँ या नहीं
लेकिन 
तुम्हें 
ना हारते देख सकता हूँ
ना थकते।
अभी जिंदगी
को कांधे बैठाकर घूमना है तुम्हें
सपनों 
को बाजू में दबाए..। 
दौड़ना है
सपनों के सच होने तक
और 
सपनों 
के मुस्कुराने तक...।
मैं जानता हूँ
तुम्हें पता है
तुम्हारी आह
मेरी 
श्वास 
की गति
प्रभावित करती है
तुम 
जीतोगी 
क्योंकि 
तुम्हारी मुस्कान तुम्हारी ताकत है
और 
मेरी भी...।

शनिवार, 31 जुलाई 2021

एक घर सजाते हैं

 सुनो ना...

एक घर सजाते हैं

दहलीज पर

सपने बिछाते हैं

छत पर

सुखाते हैं कुछ

थके और सीले से दिन।

बाहर

बरामदे में

आरामकुर्सी पर

लेटा आते हैं

उम्मीदों को

इस उम्मीद से कि

उन्हें एक उम्र को

सजाना है खुशियों से।

घर के दीवारों पर

कीलें नहीं लगाएंगे

क्योंकि 

वहां

हम खुशियों को जीते

अपने रंग

सजाना चाहते हैं

खुशियों और रंगों में क्या कोई कील

अच्छी लगती है भला

वो भी जंक लगी

अंदर तक भेदती जिद्दी कील। 

घर की खिड़की पर 

हम

बैठाएंगे 

तुलसी का पौधा

जो 

हवा से

बात करते हुए

समझता रहेगा 

कि यह घर

तुम्हारा

सुखद अहसास चाहता है।

छत पर हम

कोई सफेद सा 

सच बांध देंगे

ताकि

हमें दिखाई देता रहे 

वह सच

कि दुनिया में

सबकुछ सफेद कहां होता है।

रसोई में 

हम मिलकर

सजाएंगे

कुछ कांच की पारदर्शी बरनी

जिससे 

झांकते रहे

तुम्हारे नेह से भीगे

अचार की 

गुदगुदी सी खटास

जो

घोलती रहे

ताउम्र मिठास।

घर के बरामदे में

लगाएंगे एक नीम

पीपल

और

आंवला

ताकि 

उम्र की थकन तक

हम सहेज लें

अपने हिस्से के वृक्ष

जो

देते रहें हमें

उनकी अपनी श्वास।

दरवाजे पर

हम 

गौरेया लिख देंगे

जानता हूं

तुम मुस्कुरा उठोगी

लेकिन

सच तो है

वह आकर्षण का नियम

और

गौरेया का लौटना।

हम छत पर

रखेंगे

कुछ 

सकोरे उम्मीद के

जहां

प्यासे पक्षी चोंच डुबोकर

नहाएंगे 

और

हमारे ही आंगन बस जाएंगे।




फोटोग्राफ- अखिल हार्डिया, इंदौर, मप्र- वरिष्ठ वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर 




बुधवार, 28 जुलाई 2021

जिंदगी जहाज होती है

जिंदगी 
जहाज होती है
पानी का जहाज।
कभी
सतह पर 
शांत
बहती
कभी
तेज हवा में 
हिचकोले लेती।
कभी
मीलों चलकर मुस्कुराती
कभी
पल भर में 
खीझ जाती।
कभी
अथाह सागर पर 
लिख देती
भरोसा
कभी
धोखे पर 
चीख उठती।
कभी
तैरते हुए किनारे लग जाती
फिर 
लौट आती
बीच समुद्र के
कभी
किनारे ही डूब जाती।
जिंदगी
जहाज है
पानी का जहाज।
कभी
शांत लहरों पर
गीत गुनगुनाती
कभी
तूफान में
भयाक्रांत हो जाती।
जहाज
और 
जिंदगी
दोनों में समानता है
कि
दोनों
उम्रदरा़ज होकर
किनारे
लग जाते हैं
और 
एक दिन
टूटकर
बिखर जाते हैं...।


मंगलवार, 27 जुलाई 2021

जिंदगी मुस्कुरा उठेगी



जब
खुशी से
सराबोर
हम दोबारा बुनेंगे
जीवन।
ये
भय की अंधियारी
बीत जाएगी।
सुबह
खुलकर
मिलेंगे
गले
और
लगाएंगे मरहम
अपनों के दर्द पर।
बेहद कठिन सफर है
आंखों में
अपनों के असमय चले जाने का
दर्द
कहीँ कोरों पर
नमक के बीच
आ ठहरा है।
आएगी सुबह
जब
थमी सी जिंदगी
मुस्कुरा उठेगी...।

शनिवार, 24 जुलाई 2021

उनका जंगल...हमारा जंगल

तुम्हें जंगल चाहिए
मुझे भी।
तुम्हें
उसे रौंदकर 
बनाना है
चीत्कार करता
महत्वाकांक्षी नगर।
मुझे
केवल जंगल चाहिए
जिसमें
हमारे जंगल का प्रतिबिंब 
नजर न आए।
हमारा
जंगल तुम रख लो
जिसमें
केवल सूखा है
चीख हैं
और कुछ
अस्थियां
सूखी हुई
उन वन्य जीवों की 
जिनसे हम छीन चुके हैं
उनका जंगल...।
तुम 
जंगल 
को नहीं समझ सकते
क्योंकि
हम 
अमानवीय और हिंसक हैं।
छोड़ दीजिए
उनका जंगल
जिसमें
वन्य जीव
गढ़ते हैं
एक सभ्य जीवन...।

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

मैंने देखा है तुम्हें तब भी


 

मैंने देखा है अक्सर

तुम्हें

तब बहुत करीब से

जब 

तुम 

अक्सर थककर सुस्ताती हो 

और सोचती हो पूरे घर को

थकी हुई रात के बाद

अगली सुबह के लिए।

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी

जब उम्र के थक जाने के निशान

तुम्हारे 

चेहरे पर

तब गहरे हो जाते हैं

जब देखती हो तुम

काले बालों के बीच 

एक या दो सफेद बाल

जिन्हें तुम

आसपास देखकर

चुपचाप छिपा लेती हो 

काले बालों के नीचे। 

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी 

जब कोई नहीं उठता

तब

सबसे पहले तुम्हारी टूट जाती है नींद

अक्सर

जिम्मेदारियों को पूरी रात बुनते हुए।

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी 

जब अक्सर थकी हुई तुम

पूरे घर से आसानी से छिपा लेती हो

अपना दर्द, अपनी पिंडलियों की सूजन।

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी

जब कोई भागते हुए

ठहरकर पूछ लेता है 

तुम्हारे आंखों के नीचे 

गहरे होते काले घेरों के बारे में

और तुम मुस्कुरा देती हो। 

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी 

जब अक्सर 

देर रात तक जागती रहती हो

और

दालान पर 

नींद को रखकर 

लेटी रहती हो बिस्तर पर

आहट पाते ही

सबसे पहले पहुंचती हो

और 

बच्चे को गले से लगाकर

कहती हो

देर मत किया करो

मैं 

सो नहीं पाती।

मैंने देखा है 

तुम्हें तब भी

जब मैं अक्सर थक जाता हूं

और तुम भी

तब अक्सर होले से 

तुम मेरे 

माथे पर रखती हो हथेली

कहती हो

परेशान मत होना

सब ठीक हो जाएगा। 

यकीन मानो

तुम्हारा स्पर्श 

मैं गहरे तक महसूस करता हूं

मैं केवल मुस्कुरा देता हूं

यह कहते हुए 

कि 

रख लिया करो

तुम भी अपना ध्यान

इस भागती जिंदगी में।

मैं

इससे अधिक कहता नहीं

तुम

समझ जाती हो

कि 

अक्सर

बहुत कुछ है

जो मैं कहना चाहता हूं

लेकिन 

कहता नहीं

क्योंकि

जानता हूं

यह घर ही है

जो तुम्हें थकने नहीं देता

यह घर 

हां

जिम्मेदारियों को अक्सर

ओढ़कर सो जाना

और

सुबह

उन्हें लिहाफ के साथ लपेटकर 

अलमारी में रख देना

आसान नहीं होता।

मैं तुम्हें देखता हूं 

और

जीता हूं

क्योंकि

तुम्हारे हर दर्द की कसक

पहले मुझे 

अहसास करवाती है 

कि

हम जिम्मेदार हो गए हैं

और 

उम्रदराज़ भी।


शनिवार, 17 जुलाई 2021

आदमी के दरकने का दौर


 

मुझे थके चेहरों पर

गुस्सा 

नहीं

गहन वैचारिक ठहराव 

दिखता है।

विचारों का एक

गहरा शून्य

जिसमें

चीखें हैं

दर्द है

सूजी हुई आंखों का समाज है।

थके चेहरों पर

पसीने के साथ बहता है

अक्सर

उसका धैर्य।

घूरता नहीं

केवल अपने भीतर

ठहर जाता है

अक्सर।

सफेद अंगोछे में

कई छेद हैं

उसमें से

बारी बारी से झांक रही है

बेबसी

और

उन चेहरों पर ठहर चुका

गुस्सा।

जलता हुआ शरीर

तपता है

मन तपता है

विचार से खाली मन

और अधिक तपता है

सूख गया है आदमी

आदमी के अंदर 

उसकी नस्ल की उम्मीद भी

यह 

दौर आदमी के दरकने पर

आदमी के मुस्कराने का भी है।

यह दौर

दरकते आदमी

का भूगोल कहा जाएगा।

मैं बचता हूं

ऐसे चेहरों को देखने से

क्योंकि वह

देखते ही चीखने लगते हैं

और

कहना चाहते हैं

अपने ठहरे गुस्से के पीछे का सच।

चीखते चेहरों के समाज का मौन

अक्सर

बेहद खौफनाक होता है।


अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...