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शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

हम बदल रहे हैं


रात भर ठंड में

कराहता रहा एक शख्स

दरवाजे पर उसके

दस्तक भी दी

और

कराह भी गूंजी।

नहीं टूटी नींद

और 

न ही खोला द्वार।

सुबह

वह शख्स मर गया

दरवाजा खुला 

उस पर चादर ओढ़ा दी गई

और 

चार लोग सहानुभूति में एकत्र किए गए

करवा दिया गया उसका अंतिम संस्कार।

लोग 

उसे बड़ा समाजसेवी कह

थपथपा रहे थे पीठ

वह विनम्र होकर भीड़ के सामने रोनी सूरत लिए

कोस रहा था उस रात की नींद को।

मुस्कुराता वही व्यक्ति 

दोबारा घर में दाखिल हुआ

और

सोफे पर पसरकर 

हाथ में गिलास लेकर 

पलटाने लगा 

मैग्जीन के नग्नता से भरे पन्ने

ठहाके लगाकर हंसने लगा

यह कहते हुए 

हां 

कल रात नींद बहुत मीठी थी

और 

आज का दिन यादगार। 


गुरुवार, 3 नवंबर 2022

ठौर

 


कदंब मन में कहीं
उग आया है
उसके अहसास हमें
खींच रहे हैं अपनी ओर।
कदंब का पेड़
अब भी रीता है
इन गर्बीले फलों के साथ
इंतज़ार में
तुम्हारे कान्हा।
फिर बसा दीजिए ना
वृंदावन
फिर छेड़ दीजिए ना
बांसुरी की तान
देखिए अब भी
गोपियां वहीं आपका इंतज़ार कर रही हैं
और रोज
बुहार रही हैं
कदंब का ठौर।

सोमवार, 31 अक्टूबर 2022

सबकुछ कहां पिघलता है


यह हम हैं
हमारा वक्त
हमारी उम्र
और
जीवन का संपूर्ण दर्शन।
सब कुछ तो पिघल जाता है
तपता है
बनता है
टूटता है।
देखो पिघलते दौर में
कुछ सपने अब भी हैं उस लौ के इर्दगिर्द।
सुना है
पिघल जाता है
वक्त
और 
इतिहास।
देखो उस रौशनी के इर्दगिर्द 
कुछ सीला सा वक्त है
और सपने भी।
जो वक्त सूख रहा है
हमारे लिए। 
उससे दोबारा बुनेंगे 
हम 
अपने आप को
अपने विचारों और सपनों की दरारों को।
देखना सबकुछ कहां पिघलता है
बचे रह जाते हैं
कहीं न कहीं हम 
और हमारा भरोसा, साथ और बहुत कुछ अनकहा सा।


 

रविवार, 30 अक्टूबर 2022

प्रकृति


एक छोटी कविता...

एक सुबह
हम जागे
और 
प्रकृति 
निखर उठी।


 

शनिवार, 24 सितंबर 2022

चेहरों के आईने में


 वक्त 
हमारे
चेहरे बदलता है
वक्त
पढ़ा जा सकता है
हमारे चेहरे पर।
वक्त देखा जा सकता है
शब्दों में
उनके अर्थ और भाव में।
वक्त 
महसूस होता है
हर पल के मौसमी दंश में। 
वक्त महसूस होता है
अंदर से बढ़ते हौंसले में
कुछ अलग से सबक पढ़ने में
हर बार 
थककर खड़ा होने में।
चेहरों के आईने में
व्यवहार के खारेपन में
चुटकी भर मिठास में
और 
अपने किसी खास की 
हौंसला अफजाई में। 
वक्त 
नज़र आता है उम्र पर
और 
जीवन में।
वक्त के चेहरे नहीं होते
हमारे होते हैं।

मंगलवार, 20 सितंबर 2022

मैं तुम्हें देना चाहता था

मैं खुश हूँ
तुम्हें मौसम महसूस होता है
खासकर बारिश।
तुम्हें 
बचपन में 
कुछ बूंदें 
मैंने नन्हीं हथेली पर 
थाम लेना सिखाया था। 
देख रहा हूँ
बचपन की बारिश
अब विचारों में प्रवाहित है।
मैं तुम्हें 
संस्कार और विरासत में 
बूंदें ही देना चाहता था
जानता हूँ 
तुम दोनों बूंदों से 
सजा लोगी 
प्रकृति 
और 
अपनी बगिया। 
तुम्हें 
अंदर से हरित पाकर 
हम भी हो 
गए हैं 
उपजाऊ मिट्टी
जिससे सूखने का 
दरकने का भय 
कोसों दूर है।

(एक बिटिया बारिश की फोटोग्राफी में व्यस्त थी और दूसरी उसकी तल्लीनता पर फोकस कर रही थी...)

सोमवार, 19 सितंबर 2022

सफर में


सफर 
में 
अक्सर साथ होते हैं
अपना शहर
पुरानी गलियों में बसे 
बचपन वाले खोमचे।
दोस्तों 
के कुछ सुने सुनाए 
मीठे किस्से। 
घंटों उलझे से हम।
साथ होते हैं
कुछ बुढ़े हो चले दोस्तों के चेहरे
कुछ 
उनकी बातों में 
उम्र का खारापन।
साथ होते हैं
थकन की पीठ पर 
शब्दों के अर्थ।
साथ होते हैं
रेस में भागते पैर
और उनकी सूजन 
आंखों में थकन
और सुबह का सूरज। 
लौटने की खुशी
जीवनसाथी का इंतज़ार
बच्चों का नेह संसार
और 
उम्र के केलेंडर पर 
बीते हुए दिन के साक्ष्य।
साथ होता है देर तक 
अपने शहर का आसमां
और भुरभुरी जमीन। 
साथ होते हैं हम 
और 
वक्त।


 

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...