कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 8 जून 2023
कोई नदी तो होगी

मंगलवार, 23 मई 2023
यह वह सिरे वाली नदी नहीं
नदी का पहला सिरा
यकीनन कभी
उगते सूर्य के सबसे निचले
पहाड़ के गर्भ में कहीं
बर्फ के नुकीले छोर से बंधा रहा होगा।
नदी का दूसरा सिरा
नहीं होता।
नदी
उत्पत्ति से विघटन
की परिभाषा है।
सतह पर जो है
नदी नहीं
क्योंकि
पहले सिरे का वह बर्फ वाला
नुकीला छोर
टूटकर नदी के साथ बह गया।
अब उस नदी का
पहला सिरा भी नहीं है
केवल
हांफती हुई जिद का कुछ
सतही आवेग है
जो
उस पहले सिरे सा
किसी दिन बह जाएगा
और
रह जाएगी
केवल नदी की दास्तां
पथ
निशान
और उसकी राह में
शहरों की आदमखोर भीड़।
नदी
उस पुत्री की तरह है
जो जानती है
मायके के हमेशा के लिए छूट जाने का दर्द
और
दूसरे सिरे की अंतहीन यात्रा का अनजान पथ
और
उस पर प्रतिपल पसरता भय।
नदी है
लेकिन यह वह सिरे वाली नदी नहीं।

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023
लौट आओ
गांव के घर
और
महानगर के मकानों के बीच
खो गया है आदमी।
गांव को
लील गई
महानगर की चकाचौंध
और
महानगर भीड़ के वजन से
बैठ गए
उकडूं।
हांफ रहे हैं महानगर
और
एकांकी से सदमे में हैं गांव।
गांवों के गोबर लिपे
ओटलों पर
बुजुर्ग
चिंतित हैं
जवान बेटों के समय से पहले
बुढ़या जाने पर।
तनकर चलने वाला पिता
झुकी कमर वाले पुत्र को देख
अचंभित है
क्या महानगर कोई
उम्र बढ़ाने की मशीन है?
थके बेटे को खाट पर बैठाए
पिता देते हैं
कांपते हाथों पानी
और
खरखरी वाली आवाज़ में सीख
गांव लौट आओ
तुम बहुत थक गए हो।

सोमवार, 27 फ़रवरी 2023
पदचिह्न मिट रहे हैं

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023
नदी का श्वेत पत्र

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023
वसंत पीला सा

शनिवार, 10 दिसंबर 2022
पुरानी डायरी

अभिव्यक्ति
प्रेम वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है। शरीर क...
-
यूं रेत पर बैठा था अकेला कुछ विचार थे, कुछ कंकर उस रेत पर। सजाता चला गया रेत पर कंकर देखा तो बेटी तैयार हो गई उसकी छवि पूरी होते ही ...
-
नदियां इन दिनों झेल रही हैं ताने और उलाहने। शहरों में नदियों का प्रवेश नागवार है मानव को क्योंकि वह नहीं चाहता अपने जीवन में अपने जीवन ...
-
सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...