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मंगलवार, 17 जून 2025

नहीं आएगी वह खौफनाक रात

 हर सुबह कोई उम्मीद 

मन में कहीं

अंकुरित होती है

दोपहर तक 

उम्मीद का पौधा

उलझनों और घुटन के बीच

अपने आप को बचाता है

सांझ होते ही

उम्मीद उस पौधे के साथ मुरझाकर 

सूख जाती है। 

देर रात 

स्याह अंधेरा  

सूखी लटकी, हवा में डोलती 

उम्मीद की वो पत्तियां

कितने सवाल दबाए

अपनी पथराई आंखों से 

देखती रहती हैं। 

रात से सुबह का वह समय

दोबारा मन के ठहराव में कहीं

ओस को पाता है

उस उम्मीद के पौधे को 

दोबारा सींचता है

सुबह फिर 

पौधा नई उम्मीद के साथ 

अंकुरित हो उठता है

इस उम्मीद से 

वह खौफनाक रात नहीं आएगी आज।

नहीं

नहीं आएगी। 

सोमवार, 16 जून 2025

जिंदगी कैसे कहें तुझसे कुछ मन की

जिंदगी बता तो सही

कैसे कहें तुझसे

कुछ मन की

कुछ बचपन की

कुछ जवानी की

कुछ उम्रदराज होने के पहले भयाक्रांत सच की।

हर हिस्सा

अपने अपने सच समेटे है

कोई किसी की सुनना नहीं चाहता 

केवल

अपनी सुनाना चाहता है

कौन है जो उम्र के इन हिस्सों की 

तसल्ली से बैठकर 

सुन ले...।

जिंदगी कोई शिकायत कहां है

हां

सवाल हैं

रहेंगे 

क्योंकि इस दौर में 

कोई और सुन भी कहां रहा है

हम अपनी 

और 

अपने मन भी

सुन नहीं पा रहे हैं

जिद है

सनक है

और

जिंदगी तुम हो...

निखालिस तुम...सवाल सी ?


रविवार, 15 जून 2025

जिंदगी यही तो है

बेशक तुम्हें पसंद है

इस दुनिया के रिवाजों में जीना

लेकिन

मुझे पसंद है

तुम्हारे साथ 

तुम्हारे समय और तुम्हारी उस बेफक्री में जीना

जहां 

कोई पाबंदी नहीं है

तुम हो

मैं हूं

और 

हमारा समय।

हां 

मैं विरोध करता हूं उन सभी बातों का

जो

तुम्हें और मुझे

हम कहे जाने का विरोध करती हों।

जिंदगी यही तो है

और 

इसके अलावा कोई दूसरी दुनिया भी तो नहीं।

 

दो दुनिया, तीसरी कोई नहीं

 कोई दुनिया है

जो बहुत शांत है

अकेली है

अपने से बतियाती है

वहां कोई कर्कश शोर नहीं है।

एक दुनिया है 

जहां शोर ही शोर है

जो न बतियाती है

और 

न ही 

जीने देती है। 

यह शोर और कर्कश भरी दुनिया

हमने बुनी है

अपने लिए

अपने समय को इस कर्कशता के सांचे में ढालकर।

यकीन मानिए 

वह पहली दुनिया 

जंगल है

दूसरी हमारी 

और तीसरी कोई दुनिया नहीं है।





गुरुवार, 20 मार्च 2025

ये हमारी जिद...?

 


सुना है 

गिद्व खत्म हो रहे हैं

गौरेया घट रही हैं

कौवे नहीं हैं

सोचता हूं

पानी नहीं है

जंगल नहीं है

बारिश नहीं है

मकानों के जंगल हैं 

तापमान जिद पर है

पता नहीं

कौन 

किसे खत्म कर रहा है ?

अगली खबर पर नजर गई

हजारों पेड़ कटेंगे

हाईवे के लिए।

मैं 

बाहर लटके 

घोंसले के बाहर 

हवा में हिलते

तिनके देख रहा था। 


(साभार फोटो फ्री पिक डॉट कॉम) 


मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

साइकिल से साइकिल तक

 

ये कैसा चक्र है

हम साइकिल से 

विकास के शीर्ष पर पहुंचे

आकाश नापा

समुद्र के तल को छू लिया

चंद्रमा की सतह पर पैर रखे

और 

लौटकर 

दोबारा साइकिल पर ही आ गए

अब यह कहते हैं

स्वस्थ्य रहना है तो

साइकिल बेहतर है

सोचता हूं 

विकास के उस फेरे का क्या 

जो हमें 

साइकिल से लौटाकर 

साइकिल पर ही ले आया। 

अब हम बेडोल शरीर से 

चढ़ा रहे हैं

पुरानी साइकिल की चेन

पसीना पौंछते हुए 

मुस्कुरा रहे हैं।



(फोटोग्राफ गूगल से साभार )



सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

पहिया सभ्यता

आदमी ने सभ्यता को

पहिये पर रख

पहुंचा दिया है

दोबारा उसके पुरातन काल में

अब पहिया 

दोबारा लौटेगा 

बिना सभ्यता के

वह 

गढना नहीं चाहता 

दोबारा पहिया सभ्यता

पहिये पर बहुत भार है

सभ्यता के खून के धब्बे भी हैं

वह युग की पीठ पर

बंधा है

पुरातन की युगों की सजा भोग रहा है

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...