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गुरुवार, 25 मार्च 2021

तुम क्यों खोजते हो प्रेम को


 

तुम खोजते हो

प्रेम का अंश बिंदु।

तुम खोजते हो

प्रेम।

तुम खोजते हो।

प्रेम का पर्याय।

तुंम खोजते हो

प्रेम में कोई चेहरा।

तुम खोजते हो

प्रेम में कोई उम्र।

तुम खोजते हो

प्रेम में एक शरीर।

तुम खोजते हो

प्रेम में एक बाजार।

तुम खोजते हो

प्रेममें एक अपंग बहाना।

तुम खोजते हो

प्रेम का शहद और मिठास।

तुम खोजते हो

प्रेम के बीच कहीं कोई रसीला रिश्ता।

तुम खोजते हो

प्रेम और प्रेम की पीठ पर

सवार

कोई उसी तरह की दूसरी जिद।

तुम कितना कुछ खोजते हो

प्रेम में

प्रेम के लिए

प्रेम तक पहुंचने के लिए

प्रेम को पाने के लिए।

तुम नहीं खोजना चाहते

प्रेम का सच

प्रेम का उम्रदराज चेहरा

प्रेम का सूखा शरीर

्प्रेम का झुर्रीदार चेहरा

प्रेम में सवाल

प्रेम का ढलना

प्रेम का मुरझा जाना

प्रेम का बुजुर्ग होना

प्रेम का थका सा चेहरा।

तुम क्यों खोजते हो

प्रेम को

प्रेम

खोजा नहीं जा सकता

वो

है तो उपजेगा

और

तुम्हें

अंकुरित भी करेगा

और यदि

प्रेम नहीं है

तब तुम सूखे जंगल

की

एक तपती शिला हो

जिस पर

रिश्ते की कोई नमी

प्रेम की तासीर 

नहीं बन पाएगी।

रिश्तों का सूख जाना

प्रेम का सूख जाना नहीं है

प्रेम का सूख जाना

रिश्तों का अंत है।

बुधवार, 24 मार्च 2021

धूप को जंगल नहीं होने देंगे


 

धूप बाकी है

अभी 

धूल 

होती

जिंदगी की परत

पर 

एक टुकड़ा

रोशनी

अभी बाकी है।

उम्र के हरे 

पत्तों की

पीठ 

पर सूखे का मौसम

कहीं कोना

तलाश रहा है।

हरे 

पत्तों की

पीठ

के पीछे 

कोई 

सांझ है और रात भी।

पत्तों का 

निज़ाम

आदमी की आदमखोर 

होती

ख्वाहिशों 

पर एक सख्त

हस्ताक्षर है।

सच 

पत्तों ने 

अपनी 

धूप को 

अपनी मुट्ठी में छिपा 

लिया है

अगली 

पीढ़ी की मुस्कान

के लिए...।

वो धूप को

जंगल नहीं होने देंगे...।

मंगलवार, 23 मार्च 2021

सच बोनसाई पौधा है


 

चेहरे 

और 

चेहरों की 

भीड़

के बीच

सच 

आदमी 

की 

आदत

नहीं रहा अब।

सच

केवल

घर के 

आंगन 

में बोया जाने वाला

बोनसाई

पौधा है

जो 

बाहरी खूबसूरती का 

चेहरा है।

बोनसाई

हो जाना

सच की नहीं

आदमी के

सख्त मुखौटे

की मोटी सी दरार है।

सच

दरारों में 

ही पनपता है

अनचाहे पीपल की तरह...।

सोमवार, 22 मार्च 2021

सच गूंगी बांसुरी का शोर है


 आदमी 
सच 
को खोज रहा है
सत्ता रथ
के 
पहिये
के नीचे
भिंची मिट्टी में।
सच 
अब बुहार दिया जाता है
तूफान में
बिखरे 
आंगन के 
पत्तों 
की तरह।
सच 
अब झूठ की 
तपिश में
पिघलती हुई 
आईसक्रीम है
जो
पल भर में
गायब हो जाता है 
नजरों से।
सच 
गूंगी बांसुरी का शोर है।
सच 
चीखते 
चेहरों की बदहवासी है।
सच 
अब गूंगा भी है
और 
बेबस भी।
सच 
मोमबत्तियों 
की 
क्षणिक 
आवेग अवस्था है
और 
सच 
वो जो 
उम्रदराज़ होने तक
अपने आप को 
साबित करने
लड़ता रहे
अपनी महाभारत...।
सच 
क्या करेंगे खोजकर
हमें भी 
वो 
क्षणिक ही तो जानना है
किसी 
मोर्चे के अवसर 
के समान।
सच 
खुद चीत्कार कर 
रहा है
कैसे 
कह सकते हैं
हमने उसकी 
आहट नहीं सुनी।
सच 
कुछ दिनों 
में
शर्ट 
पर 
लगाया जाने वाला 
बैच होगा
लेमिनेशन
से सुरक्षित
और 
हमारे 
व्यक्तित्व को 
निखारता सा...। 
चलो 
सच में 
खोजते हैं
कोई कारोबार...।

शनिवार, 20 मार्च 2021

उबला सच उछाल दिया जाता है


 

चीत्कार

और 

रुदन में

एक अनुबंध होता है।

रुदन 

जब 

मौन हो जाए

वो 

बहने लगे 

जख्मों 

के अधपके हिस्सों से।

दर्द असहनीय हो जाए

तब 

वो 

चीत्कार 

हो जाया करता है।

इन दिनों 

चीत्कार

गूंज रहा है

कहीं 

कोई शोर है

कहीं

मन अंदर से 

सुबकना चाहता है सच।

सच पर 

बहस से पहले 

अब 

सच 

को 

क्रोध के जंगल में

बहस के 

पत्थरों के बीच

उबलना होता है

बहस का 

जंगल

कायदों

की ईंटों

को 

सिराहने 

रख 

सोता है

सच के उबलने तक।

उबला सच

उछाल दिया जाता है

बेकायदा 

शहरों की

बेतरतीब गलियों में

चीखती 

आंखों की ओर।

सच 

का उबाल

और 

उबला सच

दोनों में 

अंतर है। 

समाज 

नीतियों की प्रसव पीड़ा में

कराहते 

शरीर का 

खांसता हुआ 

हलफनामा है...।

सच

किसी

दुकान पर

पान के बीड़े में

रखी गई 

गुलेरी सा

परोसा जाता है।

लोग 

अब नीम हो रहे हैं...।

मंगलवार, 16 मार्च 2021

फूलों से बतियाना सफेद फूलों जैसा है


 

तुम्हें याद है

पहले फूल

जिन्हें हमने

साथ

छूआ था।

तुम कैसे

ठिठक गईं थीं

फूलों का सफेदीपन देखकर।

फूल और तुम

घंटों बतियाये थे

उनींदे

फूल

तुम्हें

बतियाते देख

कितने

खुश थे।

फूलों की दुनिया

में

सफेद

फूल

उम्रदराज़ कहलाते हैं

तुम और हम

उम्रदराज़ होने तक

सफेद

फूलों के साथ बिताएंगे हर दिन।

सच कहूं

फूलों से बतियाना

प्रेम

का

निवेदन

है

तुम्हारा

फूलों से बतियाना

सफेद फूलों जैसा है।

आओ

फूलों की रंगीन दुनिया में

एक

छत

सफेद फूलों की भी सजाएं...।

रविवार, 14 मार्च 2021

कटे पेड़ के शरीरों वाला जंगल


 नहीं जानता

तुम

कैसे सो पाते हो 

चैन से

उस रात

जब पेड़ का एक बाजू

काट दिया जाता है

और 

तुम तक

आवाज़ नहीं पहुंचती।

नहीं जानता

तुम

कैसे मुस्कुरा पाते हो

किसी 

कटे जंगल

में

सूखे पेड़ों के

आधे अधूरे

जिस्मों के बीच।

नहीं जानता

तुम्हें

पेड़ का कटना

सदी

पर प्रहार क्यों नहीं लगता।

नहीं जानता

पेड़ों के समाज

में

अब 

आदमी का

प्रवेश

निषिद्ध है

और हम बेपरवाह।

मैं

इतना जानता हूँ

कटे

पेड़

के शरीरों वाला जंगल

हमारे समाज की

आखिर सीमा है।

मैं 

इतना जानता हूँ

बिना

पेड़ों वाली सुबह

हो नहीं सकती।



अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...