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रविवार, 29 जून 2025

जल्द नहीं कटती दोपहर

 बोझिल सी सांझ

के बाद

कोई सुबह आती है

जो दोपहर की तपिश साथ लाती है

और 

उसमें घुल जाया करता है

पूरा जीवन।

उसके बाद 

थके शरीर पर 

होले होले शीतल वायु 

लगाती रहती है मरहम।

फिर 

कोई सांझ बोझिल नहीं होती। 

सुबह, दोपहर और सांझ

यही तो

जीवन है

और 

हरेक का अपना ओरा।

सुबह गहरे इंतजार के बाद होती है

कई स्याह रातों के कटने के बाद।

दोपहर जल्द नहीं कटती

थकाकर पूरी उम्र को चकनाचूर कर देती है।

और 

सांझ उस दौर का नाम है

जब आप थके शरीर को

कमजोर पैरों पर

अनिच्छा भरे माहौल में 

रोज कुछ कदम

चलाते हो, थकाते हो

और 

सो जाते हो...।

फांस

 शब्द और उसकी कोरों के बीच

भाव कहीं उलझे रह जाते हैं

अक्सर।

एक उम्र तक

एक सदी तक।

कोई नहीं सुलझाता उन्हें

कोई नहीं खोलना चाहता 

उन उलझी गांठों को। 

कुछ नेह की फांस होती हैं

वह अक्सर

चुभती रहती हैं

मन में

उम्र भर।

देखा है मैंने

ऐसी फांस कोई निकालना भी नहीं चाहता..।

कुछ रिश्ते जीवन भर

महकते हैं

अपने सुखद होने के अहसास के बीच।

हम उन रिश्तों के रेशों को बांधना नहीं चाहते

वे 

हवा में मुस्कुराते ही अच्छे हैं।

शनिवार, 28 जून 2025

काश कोई बूंद जी पाती एक सदी



बारिश की बूंदों पर 

लिखी हैं

अनेक उम्मीदें

पर्व

खुशियां

जीवन

सहजता

जीवन का दर्शन

और 

प्रेयसी का इंतजार। 

बूंदों को भी क्या हासिल

एक पल का जीवन

हजार ख्वाहिशों पर 

हर बार कुर्बान। 

काश कोई बूंद

जी पाती

एक सदी

ठहर पाती एक पूरी उम्र

देख पाती

क्या बदल जाता है उसके उस एक पल में।

प्रेम

 


प्रेम 

जो तुमसे कहा न जा सके

और

मुझसे लिखा न जा सके।

केवल

अभिव्यक्त हो

तुम्हारी आंखों में

मेरे

व्यवहार में।

केवल

महसूस हो 

तुम्हारे और मेरे भाव 

की डोर में।

तुम्हारे

और 

मेरे बीच

प्रेम ही तो है

जो 

कुछ नहीं चाहता 

केवल 

बीतते हुए 

कुछ समय में से

दो बातें

और 

दो पल।

ये प्रेम ही तो है

वाकई।

गुरुवार, 26 जून 2025

कोई चेहरा न होना ही बेहतर है

कहीं कोई चेहरा

उदास है

बैठा है किसी भीड़ की नाभी में

किसी खोह में।

कहीं कोई चेहरा

सुर्ख है

अपने ही शरीर में 

हजार ज़ख्मों के बीच उलझा सा।

कहीं कोई चेहरा

दमक रहा है

असंख्य शरीरों पर 

रेंगता हुआ सच उस चेहरे के पीछे है।

कहीं कोई चेहरा 

बेदाग है

किसी कोठरी में मुंह डाले

खोज रहा है 

बेदाग बने रहने वाली कोई खिड़की।

कहीं कोई चेहरा है ही नहीं

केवल 

आवाज है, उसके भाव है

पथराए हुए 

शिलाओं पर नुकीले पत्थरों से उकेरे गए

समय की तरह बेबाक लेकिन अदृश्य।

और कितने चेहरे चाहिए

हर चेहरा 

अपनी किताब साथ लाएगा 

और 

असंख्य

सच जो रेंगते भी है समय की पीठ पर 

बरसों तक। 

सोचिएगा

कोई चेहरा न होना ही बेहतर है

चेहरे पाकर

हम उसी के होकर रह जाते हैं।


बुधवार, 25 जून 2025

नेह से उकेरा गया महावर है प्रेम



 प्रेम 

तुम्हारे चेहरे पर

मुझे देखकर

आने वाली मुस्कान ही तो है।

प्रेम 

तुम्हें छूते ही 

गहरे तक आंखों में सुर्खी का घुल जाना 

प्रेम ही तो है।

प्रेम 

तुम्हें बार-बार दरवाजे तक लाता है

मेरे इंतजार में

और मुझे

हर रात कई बार 

तुम्हें गहरी नींद में सोए देखने

और देखकर

आनंद पाने को जगाता है।

प्रेम

तुम्हारे शरीर में आत्मा 

और भाव का स्पंदन है

और

मेरे शरीर में 

तुम्हारे हर पल होने का शास्वत सत्य।

सच 

प्रेम परिभाषित नहीं हो सकता 

क्योंकि

वह 

जिंदगी पर नेह से

उकेरा गया 

महावर है

जिसका अर्थ

एक स्त्री से अधिक कोई नहीं समझ सकता। 






Thanks for photograp google

 

बुधवार, 18 जून 2025

तो जिंदगी आसान है

 जीने के लिए 

कोई खास हुनर नहीं चाहिए इस दौर में

केवल हर रोज

हर पल

हजार बार मर सकते हो ?

लाख बार धक्का खाकर

उस कतार से

बाहर और आखिरी तक पहुंचकर

दोबारा कतार का हिस्सा हो सकते हो ?

बिना शिकायत अंदर ही अंदर

रोते रहिए

चेहरे पर फिर भी मुस्कान बरकरार रख सकते हो ?

आगे चलते व्यक्ति को 

गलत साइड ओवरटेक कर 

चाहो तो 

दाखिल हो सकते हो

अमानवीयता के जंगल में यदि हां ?

तो जिंदगी आसान है

लेकिन 

यह न कहना

कि ये भी कोई जिंदगी है।

जिंदगी का अधिकांश भू भाग

इन्हीं तरह की कशमकश से भरा होता है। 


समय की पीठ

 कहीं कोई खलल है कोई कुछ शोर  कहीं कोई दूर चौराहे पर फटे वस्त्रों में  चुप्पी में है।  अधनंग भागते समय  की पीठ पर  सवाल ही सवाल हैं। सोचता ह...