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गुरुवार, 26 जून 2025

कोई चेहरा न होना ही बेहतर है

कहीं कोई चेहरा

उदास है

बैठा है किसी भीड़ की नाभी में

किसी खोह में।

कहीं कोई चेहरा

सुर्ख है

अपने ही शरीर में 

हजार ज़ख्मों के बीच उलझा सा।

कहीं कोई चेहरा

दमक रहा है

असंख्य शरीरों पर 

रेंगता हुआ सच उस चेहरे के पीछे है।

कहीं कोई चेहरा 

बेदाग है

किसी कोठरी में मुंह डाले

खोज रहा है 

बेदाग बने रहने वाली कोई खिड़की।

कहीं कोई चेहरा है ही नहीं

केवल 

आवाज है, उसके भाव है

पथराए हुए 

शिलाओं पर नुकीले पत्थरों से उकेरे गए

समय की तरह बेबाक लेकिन अदृश्य।

और कितने चेहरे चाहिए

हर चेहरा 

अपनी किताब साथ लाएगा 

और 

असंख्य

सच जो रेंगते भी है समय की पीठ पर 

बरसों तक। 

सोचिएगा

कोई चेहरा न होना ही बेहतर है

चेहरे पाकर

हम उसी के होकर रह जाते हैं।


बुधवार, 25 जून 2025

नेह से उकेरा गया महावर है प्रेम



 प्रेम 

तुम्हारे चेहरे पर

मुझे देखकर

आने वाली मुस्कान ही तो है।

प्रेम 

तुम्हें छूते ही 

गहरे तक आंखों में सुर्खी का घुल जाना 

प्रेम ही तो है।

प्रेम 

तुम्हें बार-बार दरवाजे तक लाता है

मेरे इंतजार में

और मुझे

हर रात कई बार 

तुम्हें गहरी नींद में सोए देखने

और देखकर

आनंद पाने को जगाता है।

प्रेम

तुम्हारे शरीर में आत्मा 

और भाव का स्पंदन है

और

मेरे शरीर में 

तुम्हारे हर पल होने का शास्वत सत्य।

सच 

प्रेम परिभाषित नहीं हो सकता 

क्योंकि

वह 

जिंदगी पर नेह से

उकेरा गया 

महावर है

जिसका अर्थ

एक स्त्री से अधिक कोई नहीं समझ सकता। 






Thanks for photograp google

 

बुधवार, 18 जून 2025

तो जिंदगी आसान है

 जीने के लिए 

कोई खास हुनर नहीं चाहिए इस दौर में

केवल हर रोज

हर पल

हजार बार मर सकते हो ?

लाख बार धक्का खाकर

उस कतार से

बाहर और आखिरी तक पहुंचकर

दोबारा कतार का हिस्सा हो सकते हो ?

बिना शिकायत अंदर ही अंदर

रोते रहिए

चेहरे पर फिर भी मुस्कान बरकरार रख सकते हो ?

आगे चलते व्यक्ति को 

गलत साइड ओवरटेक कर 

चाहो तो 

दाखिल हो सकते हो

अमानवीयता के जंगल में यदि हां ?

तो जिंदगी आसान है

लेकिन 

यह न कहना

कि ये भी कोई जिंदगी है।

जिंदगी का अधिकांश भू भाग

इन्हीं तरह की कशमकश से भरा होता है। 


मंगलवार, 17 जून 2025

नहीं आएगी वह खौफनाक रात

 हर सुबह कोई उम्मीद 

मन में कहीं

अंकुरित होती है

दोपहर तक 

उम्मीद का पौधा

उलझनों और घुटन के बीच

अपने आप को बचाता है

सांझ होते ही

उम्मीद उस पौधे के साथ मुरझाकर 

सूख जाती है। 

देर रात 

स्याह अंधेरा  

सूखी लटकी, हवा में डोलती 

उम्मीद की वो पत्तियां

कितने सवाल दबाए

अपनी पथराई आंखों से 

देखती रहती हैं। 

रात से सुबह का वह समय

दोबारा मन के ठहराव में कहीं

ओस को पाता है

उस उम्मीद के पौधे को 

दोबारा सींचता है

सुबह फिर 

पौधा नई उम्मीद के साथ 

अंकुरित हो उठता है

इस उम्मीद से 

वह खौफनाक रात नहीं आएगी आज।

नहीं

नहीं आएगी। 

सोमवार, 16 जून 2025

जिंदगी कैसे कहें तुझसे कुछ मन की

जिंदगी बता तो सही

कैसे कहें तुझसे

कुछ मन की

कुछ बचपन की

कुछ जवानी की

कुछ उम्रदराज होने के पहले भयाक्रांत सच की।

हर हिस्सा

अपने अपने सच समेटे है

कोई किसी की सुनना नहीं चाहता 

केवल

अपनी सुनाना चाहता है

कौन है जो उम्र के इन हिस्सों की 

तसल्ली से बैठकर 

सुन ले...।

जिंदगी कोई शिकायत कहां है

हां

सवाल हैं

रहेंगे 

क्योंकि इस दौर में 

कोई और सुन भी कहां रहा है

हम अपनी 

और 

अपने मन भी

सुन नहीं पा रहे हैं

जिद है

सनक है

और

जिंदगी तुम हो...

निखालिस तुम...सवाल सी ?


रविवार, 15 जून 2025

जिंदगी यही तो है

बेशक तुम्हें पसंद है

इस दुनिया के रिवाजों में जीना

लेकिन

मुझे पसंद है

तुम्हारे साथ 

तुम्हारे समय और तुम्हारी उस बेफक्री में जीना

जहां 

कोई पाबंदी नहीं है

तुम हो

मैं हूं

और 

हमारा समय।

हां 

मैं विरोध करता हूं उन सभी बातों का

जो

तुम्हें और मुझे

हम कहे जाने का विरोध करती हों।

जिंदगी यही तो है

और 

इसके अलावा कोई दूसरी दुनिया भी तो नहीं।

 

दो दुनिया, तीसरी कोई नहीं

 कोई दुनिया है

जो बहुत शांत है

अकेली है

अपने से बतियाती है

वहां कोई कर्कश शोर नहीं है।

एक दुनिया है 

जहां शोर ही शोर है

जो न बतियाती है

और 

न ही 

जीने देती है। 

यह शोर और कर्कश भरी दुनिया

हमने बुनी है

अपने लिए

अपने समय को इस कर्कशता के सांचे में ढालकर।

यकीन मानिए 

वह पहली दुनिया 

जंगल है

दूसरी हमारी 

और तीसरी कोई दुनिया नहीं है।





अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...