कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
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सोमवार, 28 नवंबर 2022
जैसे कोई सुन रहा है आपके दर्द

रविवार, 27 नवंबर 2022
हम जिंदा हैं

बुधवार, 23 नवंबर 2022
सच से जूझते हुए

मंगलवार, 15 नवंबर 2022
शून्यता

इंसानों का ये अथाह महासागर

शनिवार, 12 नवंबर 2022
फूल ही तो हैं

सोमवार, 7 नवंबर 2022
प्रदूषण बहुत है
वह
साठ बरस का व्यक्ति
हंसते हुए कह रहा था
कि
बाबूजी पुरवाई तो मर्दांना हवा है
उससे कोई दिक्कत नहीं
वह बीमार नहीं करेगी।
हां
पछुआ जो जनाना हवा है
उससे बचियेगा
वह बीमार कर देगी।
मैं सोचने लगा
जिसकी कोख से जन्म लिया
जिसने पूरी उम्र संवारा
जिसने
पीढ़ी को बढ़ाया
वही जनाना
विचारों में इतनी दर्दनाक इबारत क्यों है?
सोचता हूं
हमने कैसा समाज बनाया है
हवाओं को अपने स्वार्थ और जिद के अनुसार
नामों और सनक में बांट दिया है।
तभी तो पर्यावरण अधिक खराब है
और
सुधर नहीं रहा
क्योंकि केवल
बात प्राकृतिक पर्यावरण की नहीं
सामाजिक पर्यावरण की भी है।
सोचता हूं
भला कब तक नोंचते रहेंगे हम
अपनों को
सच को
और
मानवीयता को।
कब उतार फैंकेंगे हम
अपनी भोली शक्ल पर चिपटा रखे
बेशर्म विचारों को।
बदल दीजिए क्योंकि
प्रदूषण बहुत है।

अभिव्यक्ति
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