कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
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शनिवार, 30 जुलाई 2022
हमारे प्रेम अनुबंध के दस्तावेज

गुरुवार, 28 जुलाई 2022
वो गंध अनछुई सी

सोमवार, 25 जुलाई 2022
सांझ होने पर
नारंगी जिद लिए
सूरज आया
अबकी मेरे देस...।
अबकी
महुआ तुम्हारे बदन से महकेगा,
सुनहरी चादर
सांझ होने पर
उसे लपेट सूरज
अपने सिराहने रख
सो जाएगा
सदी के किसी सूनसान गांव में
किसी जिंदा कुएं की
मुंडेर पर सटकर।
सुबह
उसी चादर को झाड़कर
आसमान को पहना देगा,
तुम उस सुबह का इंतज़ार करो,
तब कुछ
सुनहरा सा वक्त में बीनकर टांक दूंगा
घर के दालान में
लगे नीम पर,
हम नीम की
उम्मीद वाली छांव में मुस्कुराएं...
और
तब सूर्य भी कभी
सुस्ताने ठहर जाएगा
वहीं किसी झूलती शाख पर...।

मंगलवार, 28 जून 2022
ये तस्वीरें सहेज लेना

शनिवार, 25 जून 2022
आदमी अक्सर घटता है
उम्र का पहिया
अनुभव
का पथ होता है।
सिंदूरी सांझ
और
स्याह रात के बीच
आदमी अक्सर घटता है
बंटता है
रचता है
खोजता है
पाता है
किसी मूल से टकराता है
किसी लकीर पर
कुछ गठानें बांधता है
आदमी इसी समय
विभाजित होकर
दोबारा जुड़ जाता है।
उम्र का अनुबंध
सुबह देता है
दोबारा आदमी एक
पहिया होकर
नापने लगता है स्वयं से दूरी
और सांझ होते होते
खेत हो जाता है।
उम्र में अनेक रात
भट्टी सा तपता है
एक दिन
सुबह
दोपहर
सांझ
और
रात होकर
राख हो जाता है।
अनुभव का पथ होता है
पहिया होता है
बस आदमी
बदलता रहता है।
एक
उम्र के अनुभव का पथ
दीवार पर
सच में उकेरा जा सकता है
बेशक
किसी सांझ के चेहरे पर
कोई लकीर की तरह।

बुधवार, 11 मई 2022
तुम आयत हो
तुममें और मुझमें
कुछ
है
जो केवल
तुमसे होकर
मुझ तक आता है।
तुम आयत
हो
मुझ पर
गहरे उकेरी गई।
तुम्हारे चेहरे पर
अक्सर
कुछ सुर्ख सा महकता है
और मैं
तुम्हें एक सदी की भांति
सहेज लेता हूँ।
तुम्हारे ख्वाब
जो
टांक रखे हैं
तुमने
हमारे भरोसे की शाख पर।
बारी -बारी उतार
तुम्हारा
उन्हें धूप दिखाना
हमें करीब लाता है
सपनों के।
तुम्हारी खींची गई
उस
कच्ची दीवार पर लकीर
जिसे
मैंने जिंदगी कहा था
आज भी
हम अक्सर टहल आते हैं
दूर तक
निशब्द से
हमारी राह
अपनी राह
कोई और राह हमने
खींची ही नहीं।

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022
तुम चाहो तो तुम्हें मैं दे सकता हूँ

अभिव्यक्ति
प्रेम वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है। शरीर क...
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यूं रेत पर बैठा था अकेला कुछ विचार थे, कुछ कंकर उस रेत पर। सजाता चला गया रेत पर कंकर देखा तो बेटी तैयार हो गई उसकी छवि पूरी होते ही ...
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नदियां इन दिनों झेल रही हैं ताने और उलाहने। शहरों में नदियों का प्रवेश नागवार है मानव को क्योंकि वह नहीं चाहता अपने जीवन में अपने जीवन ...
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सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...